परमहंस स्वामी रामतीर्थ जी महाराज | Paramhans Swami Ramtirth Ji Maharaj

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Paramhans Swami Ramtirth Ji Maharaj by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नित्य-जवन का विधान ७ ब्रह्म त॑ परादायोउन्यत्रात्मनो अहम লহ! ছাল ঘঁ परादाद्योड नन्‍्यत्रात्नोः क्षत्र वेद) लोकास्त॑ पराडुयो< न्यत्रात्मनो लोकान्वेद। ইনার पराहुयोंड न्यत्रात्मनो देवान्वेद । * वदास्तं॑परादु्यो ऽन्यचात्मना वेदान्‌ चेद्‌ । भूतानि तं परादुर्यो.ऽ न्यच्रात्मनो भूतानि चेद्‌ । खं तं परादायोऽन्यचात्मनः सर्य वेद्‌ । ददं ब्रह्म, इदं त्रम्‌, इने लोकाः, इमे देवाः, इमे वेदाः, इमानि भुतानि, इदं खर्वम्‌, यदयमात्मा ॥ ७ ॥ ( चृह० उप० श्र० ४ घ्रा० ५ मे०७) श्रथः त्राह्मणत्य उखको परे हटा देता है, जो आत्मा से अन्यत्र ( किसी दुसरे के श्राश्रय ) ब्राह्मणत्व को समभता है | स्षनियत्व उसे परेहटादेता है, जो श्रात्मा উলঙ্গ ज्षत्रियत्व फो देखता है । लोक उसको परे हटा देते हैं, जो आत्मा से अन्यत्न लोकों फो जानता है। देवता उसको परे हटा देते हैं, जो आत्मा से अन्यत्र देवताओं को जानता है। चेद उसको परे हटा देते हैं, जो आत्मा से ল্য, वेदो को जानता है । प्राणधारी उसको परे इृटा देते हैं, जो प्राणियों को आत्मा से श्रन्यत् देखता है। प्रत्यक वस्तु उसको परे हटा देती है, जो चर्स्तु को आत्मा से अल्यत्र जानता है। यदद ब्राह्मणत्व, यह ज्नियव्ब, य. लोक, ये देव, ये वेद, ये प्राण- धारी, यह पत्येक वस्ठु, जो है, यद सब आत्मा ही है । (श्वति) थे भासमान पदार्थ जो भोले प्राणियों को आकर्षण करते ई, देखन मे तो भगवान्‌ कृष्ण की भोली सूति के समान ছু मन रूपी सप उनको झट निगलता जाता हैं; परन्तु भीतर : पहुँचते ही वे पदार्थ श्रन्दर से छुया छुभे. देते हैं, मन रूपी




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