वैदिक पशुयज्ञ मीमांसा | Vaedik Pashuyagya Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा प्रकरण पशुरक्षा विषयक सामान्य आज्ञाएं ओर पाथना ~~ धक वेदों मे खान २ पर पशुरक्षा के सम्बन्ध में आज्ञाएं বগা সানাই ই । वेदों को, यज्ञ म, पशुवध यदि अभीष्टे होता तो बे पशुरक्षा के लिये इतने उत्सुक न होते | उन आ- ज्ञाओं तथा प्रार्थनाओं का कुछ नमूना पाठकों के सम्मुख বা जाता है । অথা+__ { १ ) यजमानस्य पश्पाहि ॥ य० १।१॥ ` अथीत्‌ यजमान (শব্ধ करने बलि ) के पशुओं की रकता कर । यहां पर “पशुरक्ञा-विषयक' यह आज्ञा राजा के प्रति दी गई है | जो मनुष्य यज्ञशील हे. उस के पशुओं की रक्षा करना राजा का धर्म है। ताकि वह यजमान, पशुओं के दूध, दही और घी द्वारा यज्ञ कर सके। पशुरक्षा के बिना दूध आदि का पुष्कलं होना असम्भव है । और इन वस्तुओं की पुष्कलता के विनां , यज्ञो का घर २ में प्रसार नहीं हो सकता । और जो यजमान नहीं अथात्‌ पशुओं के होते हुए भी जो यज्ञ 'नहीं करता, उस के पशुओं की रक्षा का भार भी राजा पर नहीं | ,




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