प्राचीन भक्त | Parchin Bhakt

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Parchin Bhakt by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्त महिं अगस्त्य ओर राजा दाह १३ प्रति रूप गया | उनके मनमें भगवानके पवित्र दर्शनकी छाल्सा .जाग उठी | वें भगवानके लिये- ही सब काम करते, परल्तु उनकी चिन्ताका एक यही विषय हो गया कि मुझे कब भगवानके दर्शन होंगे। ज्यों-ब्यों दिन बीतने छगे त्यों-ही-त्यों राजाके मनकी व्याकुलता भी बढ़ने छगी | एक दिन वे बहुत ही खिल होकर मन-ही-मन अपनेको घिक्कार देते हुए कहने -छगे--'अहो! न मा्धम पूर्वजन्मोमिं मैने किंतने पाप किये हैँ जिनके कारण आजतक मैं मगवानके दर्शन नहीं पा सका | अवश्य ही यह मेरी पापराशिका . ही फठ है | अथवा यह भी हो सक्ता है कि मेरा मन वस्तुतः ` भगवान्‌का दर्शन चाहता ही नहीं है मेरे मनम यदि भगवरानके छ्यि व्यक्ुरुता वास्तविक होती तो भक्तवत्सक अन्तर्यामी भगवान्‌ क्यों दर्शन देनेमें विलम्ब करते | अब मैं कौन-सा उपाय कहूँ, जिससे ये विरहतापसे जख्ती हुई आँखें मगवानके मुखचन्द्रका दर्शन पाकर शीतल हों | मैं बड़ा ही अपराधी हूँ। मुझे मगवानके श्रीमुखका एक शब्द , भी आजतक नायी नहीं दिया | भगवान्‌ एक वार्‌ सुनने यदी कड देते कि मैं तुम्हें छाख वर्ष बाद दर्शन दूँगा तो भी मेरा हृदय नाच उठता | उनकी मधुर वाणी सुनकर मैं उनकी बाठ जोहता हुआ , जीवन धारण करता | परन्तु हाय | अब किस आशापर जीठँ; क्या मेरे हृदयेश्वर मुझे इतना आश्रासन भी नहीं देंगे यों कहते-कहते , रोजा शङ्ख ` अत्यन्त व्याकु हो गये.| उनकी आँखोंसे तत्त आँसुओंकी धारा वहने गी | उनके प्राण कण्ठगत हो गये और वे भगवानके ध्यानमें वेखुध होकर जमीनपर गिर पड़े | | इतनेमें ही उनके कानोंमें मधुर आवाज 'आयी | मीठे खरोको




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