भगवद्गीता | Bhagwadgeeta

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Bhagwadgeeta by प्रभुदयालु शर्म्मा - Prabhudayalu Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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কিরে (৩) येग यू उन सप केष लियमितः फरमुंक में ऊहऊाता है पे इन्द्रियां वश कर लेता हैः दोहि घत्न प्रतिष्ठषएाला १६९१ विषये सेंडपांच ऊूगाने से; सर उसी दिघय হসলালা হী। ' संगसे फास उत्पण्त हीय फरं फ्लोध केर फिर उपजरताहै।६२ 'क्रोच से सेह मगठ छोकर, षो तिर स्मृती माता है। इसणे शक्ति समिट जाने से, ये घही जाश' कराता है ॥ ` नि्टचयास्मका लह ছটা, जब, प्राणोयें बिसराता है । मणौ हायकर विषयें म, फिरता थे चछुर खाता है॥ ६इ॥ नए जात्नदशो ' मीर विधेयात्मा, रागद्वेबः घशाता है। झन्द्रिम से घिणयें से विषवरे,'धेए खानन्द्‌ লালা ই ॥ ६४॥ सिसेल घितके पएोने. सेये, रे दुःख उट्ासा है चिस प्रसक्ष हो जाते से फिर, शीघ्र हि लझ्धि ठराता है।॥ ६५॥ नहीं 'जयक्त फो बुंदी घिर, नहीं भात्मज्ञाव, दशॉपता है । भावभाधिनकेणाल्तिनंहीं िलशान्तिन हीं सखि या ता है।। ६60 হ্ীব মাঘ আস নিন से; पल में भाव बद्धाता. है ३ धसे एन्द्र जघ विधिये मे, विचरं जो छलचाता है ॥ खाकतर सन इन्द्रिन पीड, विष्यो सें केश चाता है । । संग में घही कः छेलकर, पत्तो क्षा इर्वाता ३1 * ६७ ॥ `. सघ यरः से निरूकी सल्द्रिन छेष्दन्द्रिन कजे भखातारै। উই सदा भुशा बे इससे, यो प्रज्ञा मत्तिष्ठाता, है ॥ ६५८७ देष्ठा--नो चव भूतो को सशर, संयनिकाव्ये भान्‌, . प्मणी शं खखप्न मे, संयि जागे न्तन ।। ` ` खो भतो ष्ठा जागना, निशा यो सुनि विद्वान । ये दिषये में जागतेस वो सोये सुनसान ६९ ॥ जैसे आपदि पूछ हूँ. अचछ प्रतिष्ठावान । सागर में घर ভাই, ক লা उंत्तरन थे




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