वेदौखिलो धमर्ममामूलाम् | Vedoakhilo Dharmmamulam
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ २ )
छुडे-नदेंस मिश्रित पानी खतरे दूध पी छत है. इत्यादि २. वात:
भी श्रि को हैं । रामरक्त दोने पर भी बेचारे' तुलसोदास--
जी को सूर्य्य, अचन्ठ, पथियो/ समुद, नदे, पर्वत,-श्ादि-की
विद्याएं किलित् मालूम नहीं थी । भक्तो | देखो ! यदि पृथिवी
को पकड़े हुए शरीरेधारी खोप द; तो इनके पकडुनेहारे भी
फीई चाहिये,। यदि कहो कि इनक क्य ने. पकड रवा
है। तो पुन. इस को पऋकड़नेहाग भी अन्य कोई चाहिये ।
इस प्रकार धअनवस्थादोष आवेगा + अन्त म- किसी-को स्व-.
शक्तिस्थित मानना पडेया । तब प्ृथ्िवों फो हो ऐसी क्यो
न भान लेते ? सत्यान्वेपी पुरुषों ! वेदों में यह बात आत्ती
है और आजकल स्कूल के छोटे बच्चे तक जानते हैं कि पृथिवी
बड़े ेग से घूमा करती है । न सूर्य का 'कोई रथ ओर न
उसमें कोई घोड़े हैं | देश में कोई भी एक' रामायण प्रेमी है ?
जो हंस का मिश्रित दृधपानी से दूध को प्रथक्र् करदेने का
शुर ग्ग कर तुलसीदास कौ दात की सत्यता सिद्ध कर ।
अतः ऐ प्यारे भ्राताओ ! इन गप्पो को त्याग वेद की शरण
में आओ | प्रमाण-- दिशि कृच्छरहु कमठ अचह्धि
कोला! धर धरनि धरि धौर न डीला'' '+रि
भुवन घोरकठोर रव रवि बालि त्यूर्जिं'भारग
चले] सन्त इस गुण गहहि पथैः परिह्ररि
वार्विंकार ! (बाल )' घुनः तु० ' दाः “कहते” हे कि.
४७--विभठ के पेर से गगा, লজ্জা উ'অন্তুলা হানি
नदियां निकलती हैं । ४८--हिमालेय, विन्ध्योचंल গ্যাহি
पवतो को भी भलुष्यवत् विवाह, सन्वानि मादि श्या क॑रते थे 11
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