हरिधारित ग्रन्थ रत्नम | Haridharit Granth Ratanam

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Haridharit Granth Ratanam by वासुदेव शर्मा - Vasudev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ | अशोरोगाधिकार । मरिचान्‌ हिगुणाशु'ठ चित्रमष्रगुण तथा ॥ ४१ ॥ सृरण: पोडशगुणः सवध्यों द्विगुणोगुड:। एपा टंकद्बवटी दुनामानाह गुल्मजित्‌ ॥ ४२ ॥ सरिच है भांग, शुठों २ भाग, चीता ८ भाग, सुरणकंद ( पंजाब प्रांत में इसे जिमीकंद अहा जाता दे ) *६ भाग, सब ओऔषधों से द्विगुण पुराना शुड़, प्रथथ सब ओऔषयधों का बारीक चूर्ण करे, वाद गुड़ मिलाइर इमामदस्ता में धर #र खूब चोटें लगाबे, लब औषधि अच्छी त्तरद मिल जाय तो २ टंक (८माखा) के मोदक तेयार करे, यह गोलो अश (बवासीर 3 श्रानाह (पेटका फूल जाना ) और गोला का नाश करता है॥ ४२॥ अथ चण म। स्योनाकरि चत्रकः शुःटी कीटजं सन्धवंविडम्‌ | चण॒ तक्रेण संपीतं दुनाम्नां साशनं परम्‌ ।। ४२ ॥ তাও चीते की छात्न ( यहा रक्तांचत्रक लेना उत्तम है सोंठ, इन्द्रयव, सेंवानमक, विडड् इनका चुण गाय के मठा सेवन किया अर्श का नाश करवा है ॥४३॥ लबड् ” घृतसंपीतं रक्ताशों नाशनं परम । लोग का चूणों गौ घृत से भक्षण किया रक्तार्श ( खूनी बवासीर ) का नाश करता हैं । সিসি -नी-री नल पैनमिनन ली +-3ननन-++3५+>- जीनत +-3--2+4220-3५<>५०५०- पका > नम ९०ग+न्‍ मो जम जज पनमभकत१३० ५२२८० ५०२५२२१००१०११०२०५-३१०८/७# की आज ) से 1 1.17 1 अथ भगदर की चिकितसा। दन्ती निशामलक कल्कितलतेपनेन । प्राततभेगन्दर देवन वृत्तिमेति ५ शुठी वटच्छद धरासुर दारुजाती। , . पत्नाणि सेन्धव युतान्यथवा प्रलेपात्‌ ॥ ४४ ॥ ,




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