हरिधारित ग्रन्थ रत्नम | Haridharit Granth Ratanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ |
अशोरोगाधिकार ।
मरिचान् हिगुणाशु'ठ चित्रमष्रगुण तथा ॥ ४१ ॥
सृरण: पोडशगुणः सवध्यों द्विगुणोगुड:।
एपा टंकद्बवटी दुनामानाह गुल्मजित् ॥ ४२ ॥
सरिच है भांग, शुठों २ भाग, चीता ८ भाग, सुरणकंद
( पंजाब प्रांत में इसे जिमीकंद अहा जाता दे ) *६ भाग, सब
ओऔषधों से द्विगुण पुराना शुड़, प्रथथ सब ओऔषयधों का बारीक चूर्ण
करे, वाद गुड़ मिलाइर इमामदस्ता में धर #र खूब चोटें लगाबे,
लब औषधि अच्छी त्तरद मिल जाय तो २ टंक (८माखा) के
मोदक तेयार करे, यह गोलो अश (बवासीर 3 श्रानाह (पेटका
फूल जाना ) और गोला का नाश करता है॥ ४२॥
अथ चण म।
स्योनाकरि चत्रकः शुःटी कीटजं सन्धवंविडम् |
चण॒ तक्रेण संपीतं दुनाम्नां साशनं परम् ।। ४२ ॥
তাও चीते की छात्न ( यहा रक्तांचत्रक लेना उत्तम है
सोंठ, इन्द्रयव, सेंवानमक, विडड् इनका चुण गाय के मठा
सेवन किया अर्श का नाश करवा है ॥४३॥
लबड् ” घृतसंपीतं रक्ताशों नाशनं परम ।
लोग का चूणों गौ घृत से भक्षण किया रक्तार्श ( खूनी बवासीर )
का नाश करता हैं ।
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अथ भगदर की चिकितसा।
दन्ती निशामलक कल्कितलतेपनेन ।
प्राततभेगन्दर देवन वृत्तिमेति ५
शुठी वटच्छद धरासुर दारुजाती। ,
. पत्नाणि सेन्धव युतान्यथवा प्रलेपात् ॥ ४४ ॥ ,
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