संक्षिप्त समान्य मनोविज्ञान | Sanshipt Samanaya Manovigyan

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Sanshipt Samanaya Manovigyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) इस भकार हम पेखते हैं. कि मनोविज्ञान का विषय विस्तार सन्तं अशस्त है | यह. अशुधव, ज्यवह (५ शोरोरिक प्रक्रियाओं ধর্ম बाह्य उत्तेजनाओं को अध्ययन करता है. मन की निमिषे अवस्थाएँ भी इसफे अध्ययत का विषय ह । ९५५, ( 2076871 ) , আল और पॉगलपन आदि सो इसके अध्ययन के विषय हैं। इस प्रकार प्रायः यह सन से आन सभी अवस्थाओं एवं विषयों रोर पदार्थो का अध्ययन करता है | | सनोविज्ञान को उपयोगिता का সণ करने के लिए यह व्यक्त कर पसा आवश्यक है कि इसको उपथोगिता आधुनिक संसार के सभी ज़ेत्रों में है । , ` खनसे षदसी नाततो चद्‌ है किदन ननोचिन्ननके ही प्र्प्‌ से अपने आपको जानने में समथ होते है । जीवन, को सफण बनाने के लिए सझुण्य व) विभिन्न वातावरण में अभिषोजित करने को आवश्यकता ५पइती है ओर यह अभियोजन नोवे निच परिज्ञान से ही संभव है। इसी के প্রথা হন अपनी विभिन्न सानसिक कियाओ और योग्यताओं का ज्ञान भाप्त करते है तथा अपने शु् और दोधो को जानने में सभथे होते हैं। कहने का असिप्राय यह है कि महुष्य अपने आपको जानने में लतभभ मनोविशान के ही प्रसाद से हो ता है । হিনা-প में भी मनोकविज्नान को फंम उपयोगिता नहीं है 1 झाचीन काल से सभी अकार के विद्यार्थियों को एक ही प्रकार की शिक्षा दी जाती थी और परिशाम यह होता था कि बहुत से विद्यार्थी पहने से जी चोराते थे ओर ददु विद्यार्थी-जीचन भार




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