नवभारत | Nav Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( अ ) नव-भारत का अर्थ अथ-शास्र सानव सुख-साधन का एक जटिल विज्ञान दै मौर इसका अनादि काल से विवेचन होता आया है परंतु हम इस समय सभ्यता के ऐसे युग में पहुँच चुके हैं, विकास की एक ऐसी स्थिति पर खड़े है. जहाँ से हमें अपने प्रगति-पथ की स्पष्ट कर नव-भारत भारत के लेना है, अपने दष्टि-कोण की सा्थंकताको भी आर्थिक पुनरोद्धार की भाँति परख लेना है और इस उद्-बुद्ध विश्व के एक सरल और सुबोध- समक्ष एक अटत घोपणा कर देनी है कि भारत सी रूप-रेखा है। वपे का आर्थिक-विधान भारतीय, मौर केवल भार- तीय ही हो सकता है। हम पाश्चात्य परिभाषाओं के संज्ञा-हीन अद्वीकरण और प्रचुलित वाद-नानात्व में खो जाने की समस्त सम्भावनाओं को दूर रखना चाहते हैं | इसीलिए हस अपने आयोजन तथा विवेचन का परिचय निव-भारत? के नाम से करा देना आवश्यक सममते हैं। 'नव-भारतः भारत के आर्थिक पुनरोद्धार की एक सरल और युयोध. सी रूप-रेखा है; यहाँ अथ-शाम्र के उन्हीं अज्ों पर और उसी रीति से जोर दिया गया है जो सर्व-साधारण के व्यावहारिक जीवन का प्रत्यक्ष साज्षात्‌ करा सकें। अपने “उसी विवेचन ओर विश्लेषण समुथ्यय” को हम नव- भारत? कहेंगे । २ इसी संबंध में हमें अपने आशिक दृष्टिकोण को निःशक्क थोर * सिश्नरेम” रूप से स्पष्ट कर देना भी हितकर प्रतीत होता हे। जेबॉस की ঈসছ-ক্যাভযাঞ্ও (6৩০৮৮ 0? ৮10০) ন ঘহিন্মল सें आशिक নিন্বাহী (20৫02002010 '०पष्टा18 ) को एक नया रंग दिया और धीरे धीरे लोग इस मान्यता पर आने लगे कि अथ-शासत्र में बवार्थतः भातिक *# हम अज्ञरेजी के पेल्यू ( ४0० ) शब्द के लिए “मल्प” या /हीमता का प्रयोग करने कं बनाय श्री सम्पूर्णानन्द जी द्वारा प्रचारित नदत क यः शयन व्यवहार करना ही उचित समझते ६ झोर इसके कारण नी वही दा जी ने बताये हैं। देखिये 'समाजवादः पृष्ठ ४ ( भूमिका ) |




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