विश्वकी रूपरेखा | Vishvki Rooprekha

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Vishvki Rooprekha by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृ थिवी | ` विश्व | ३ ज्योतिषके विकासके साथ भूकेन्द्रक विद्वके खिलाफ कितने ही प्रबल সহল उठे, किन्तु ज्योतिषी अपने पुराने सिद्धांतों बिना छोड़े उसमें सुधार « करते रहे; यहाँ तक कि वैज्ञानिक युगके आरंभ तक यूरोपमें प्रचलित, तालमी (१५० ई० )का ज्योतिष भूकेच्द्रताकों कायम रखनेके लिए ग्रहोंकी चित्र १ कक्षाओंकों पृथिवीके गिर्द घृमनेवाली दूसरी कक्षाएँ मानता रहा (चित्र १) और भारतमें तो आज भी पंचांगोंमें श्रायेमट्टकी जगह वराहमिहिर, बरह्म- गुप्त, भास्कराचार्यके भूकेन्द्रक ज्योतिषका बोलवाला है । सोलहवीं सदीमें यूरोपमें विचार स्वात््यकी लहर आरंभ हुई। ˆ उस वक्‍त हालेंडके ज्योतिषी कोपरनिकस्‌' (१४७३-१५४३ ई०)ने पुराने यूनानी ज्योतिषियोंकी भूश्रमण-संबंधी युक्तियोंकी गणित और तत्कालीन मोदी बेध-प्रक्रियासे परखा । उसे मालूम हुआ, कि भूध्रमण मान लेनेपर ग्रहोंकी गति और कक्षाएँ अधिक सरल हो जाती हैं, शोर तालमीकी कितनी ही वक्लिष्ट कल्नाओंकीआवश्यकता नहीं रह जाता । तो भी उसकी तथा: उसके पष्टिकर्ताकेप्लरकी वातोंपर पूरा विश्वास तनतक नहीं हुआ, जवतंक कि गेलेलियो (१५६४-१६४२ ई०)ने १६१२मे दूरवीनका आविष्कारकर आँखोंके प्रत्यक्ष करनेकी शक्तिको कई गुना 25097608005, ४:




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