मीरा बृहत्पदावली भाग - 1 | Mira Brihatpadawali Bhag - 1

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Mira Brihatpadawali Bhag - 1 by मीराबाई - Meerabai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ मीरां बृहत्‌ पदावली [ ३ पद-५ : राग-कालिगड़ा वा कान्‍हड़ा : ताल-धीमा तिताला ( भगवत्‌ लीला ) अजी ये ललाजू आज गोकुल बासी (टेर) गोकुल बासी प्राण हमारे, हाँ ललाजी । श्यामसुंदर अविनासी ॥| १ इत गोकुल उत मथुरा नगरी, हाँ ललाजी । नीचे नदी यमुनासी ॥ २ यमुना के तीरे धेनु चरावें, हाँ ललाजी । हाथ लिये नौलासी ॥ ३ बृन्दावन की कुंजगलिन में, हाँ ललाजी । संग दुलहिन राधासी || मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, हाँ ललाजी । तुम ठाकुर मैं दासी ॥। ५ ॐ ® पद-६ : राग-विहाग : ताल-कहरवा ( मनस्ताप ) ग्रपर्णाँ करमदही का खोट, दोष कई दीजेरी भ्राली (टेर) मैं तासू बृकू' कोई न बतावे, सब ही बटाऊ लोग । सुणाजो री मोरी संग की सहेली, बाट चलत लगी चोट ॥| १ अपणा दरद कूँ सब कोई जाणें, पर दुख 'कूँ नहिं कोइ । मीराँ के प्रभु हरि अविनासी, बची चरण की ओट ॥ २ & ॐ ॐ ५-२ (म); (आा-सा-भा. १ पृ. ११३) ६-२ (म) টু (कब्‌. १ ३) /




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