चरित्र गठन | Charitar Gathan

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Charitar Gathan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद ।... | ` ९. . साधुता का धर्म सत्यप्रियता है । “जितना ही सत्यप्रियता का अभाव है उतना ही सुज़नता का हास है। सत्यप्रियता समाज के रिए एक ऐसा उत्तम बन्धन है कि जिससे समाज की बहुत सी बुराइयाँ दूर दा जाती हैं। सिफ़े झूठ न बोलने के भय से ही समाज का बहुत कुछ सुधार হা सकता है| किन्तु बहुत लेगें के मुँह से यह सुनने में आता है कि बिना झूठ वाले काम नहीं चलता । पाठशालाओं में शिक्षकों के निकट सज़ा, पाने के डर से विद्यारथिगण, घर में माँ-बाप ओर अन्यान्य शुरू जनें से घिक्कारे जाने के भय से लड़के छड़कियाँ, -मालिऋ के डर से नाकर ग्रेर समाज की निन्‍्दा ग्रार छेकलज्ञा के भय से - गाँव के रहने वाले झूठ वेलना अड्जीकार करते हैं| अब यह सचना चाहिए कि घर घर में व्याप्त होने वाले इस मिथ्या भाषण का मूल क्या है ? इस का मूल डर है। डर जाने ही पर छेग झूठ का सहारा छेते हैं। भीरता और कायरता के सिवा इस मिथ्याभाषण का श्रोर कारण क्या कहा जा सकता है । करई पटक सामान्य गुं के अभाव से यह भारी ` ` देप उत्पन्न हेता है । चिना विचारे जव कोई अनुचित कर्म्म - कर वैठता है तव उसे भय हाता है| .वह सचता दै--देष स्वीकार करने ही पर मैं दण्ड पाऊँगा, घर. के छोग सुभं पर क्रोध करेंगे | अड़ास पड़ास के छोग मुझे घृणा की दृष्टि से




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