सम्यक्त्वपराक्रम चतुर्थ - पंचम भाग | Samyaktva Prakram Part-4-5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पेतीसवाँ बोल-&
जाता है परन्तु विषयों की वासना नही मिटती । विषयों
की जो वासना उपवास करने पर भी शेष रह जाती है,
उस वासना का उच्छेद करने के लिए परमात्मा का शरण
ग्रहण करना आवश्यक है । उपवास करने से विषय तो दूर
हो जाते है परन्तु विष्नरूप जौ वासना वाकी रह् जाती है
वह परमात्मा के शरण में जाकर दूर की जा सकती है ।
तपश्चरण द्वारा विषयेच्छा भी समूल नष्ट की जा सकती है
और इसीलिए बाह्य तथा आशभ्यन्तर तपश्चरण किया जाता
है । वाद्य तपश्चरण से विषय निवृत्त हो जाते है भौर
आभ्यन्तर तप द्वारा अर्थात् परमात्मा का शरण ग्रहण करने
से विषयो की वासना भी मिट जाती है ओौर चित्त की
शुद्धि भी हो जाती है ।
आज ' के लोग दवा के ऐसे अभ्यासी बन गए हैं कि
दवा के नाम पर वे अखाद्य और असेव्य पदार्थ भी खा जाते
ओर सेवन करते हैं । इस प्रकार की भ्रष्ट दवा से बचने
के लिए तथा अन्तकरण को शुद्ध करने के लिए उपवास
करना शारीरिक ओर आत्मिक विकास को दृष्टि से अत्या-
वर्यक ই । तपश्चरण करने वाला भ्रष्ट दवा के सेवन से
नच सक्ता है भ्रौर अपने भ्रन्तःकरण को भौ शुद्ध करं
सकता है ।
कोई-कोई लोग' उपवास के नाम पर खान पान में ही
मशगूल रहते हैं। कल उपवास करना है, ऐसा विचार करके
कुछ लोग हलुवा आदि गरिष्ठ पदार्थों से पहले ही पेट भर
लेते हैं | जैनश्ास्त्रो का कथन है कि उपवाप की यह विधि
नही है । घारणा और पारणा के दिव एक ही बार भोजन
करने से चतुथं मक्त उपवास होता है । अर्थात् धारणा के
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