महाकवि विद्यापति | Mhakavi Vidhyapati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
606
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पति के इतिहास सें युगान्तर -उपस्थित -हो गया। आपने अनेक
युक्तियों के द्वारा यह प्रमाणित किया कि विद्यापति मैथिल थे न कि
बड़ाली । १८८१-८२ ई० में सर (१) ग्रीअसे न ने 31 00००
070 0 {४८ शभा 18) 20888 ० ४०७ छ1087 नासक
पुस्तक लिखी जिसे एसिएटिक स्ोखाइटो ने प्रकाशित किया। इस
पुस्तक में विद्यापति-रचित ८२ पद औगरेजी अनुवाद के साथ प्रका-
शित हुए | जस्टिस शारदाचरण मिन्न के व्यय- से बज्ञीय साहित्य-
परिषद् के द्वारा बाबू नगेन्द्रनाथ कृत व्याख्या और विद्वत्तापूर
भूमिका के साथ पदावल्ली प्रकाशित हुई | महामहोपाध्याय हरप्रसाद्
शास्त्रो ने कीतिलता का सम्पादन किया। इन पुस्तकों में इसी तथ्य
का समर्थन किया गया | यही कारण है कि इस समय यह् निवि
वाद सिद्ध हो गया है कि विद्यापति मैथिल थे, तथापि पाठकों के
मनोरलनाथ कुछ प्रमाणों का दिग्दुर्शन यहाँ कराया जाता है।
(ग) विद्यापति के मिथिलानिवासी होने के प्रभाण
(१) भाषा को और ध्यान देने पर पता लगता है कि विद्या-
पति मैथिल थे । मैथिली और बड्डलीय भाषाओं सें समानता रहने
पर भी दोनों में प्रधान भेद् यह है कि विभिन्न लिङ्गो मे मैथिली
की क्रियाओं के विभिन्न हप होते हैं। जैसे--राम गेलाह (राम गये),
गौरी गेलीह ( गौरी गई ) आदि; किन्तु बह्ध भाषा में इस प्रकार
_ विभिन्न रूप नहीं दिखाई पडते है । विद्यापत्ति के पदां को क्रियां
मे विभिन्न लिङ्ग पाये जाते दहै। जवे : १
{ १९-) 17618 & प्रवण के ८०], 4, 14 म प्रौश्नसनने-विया
पवि का विशेष परिचय दिया दै। हि ह .
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