संत समागम भाग १ | Sant-samagam Part-1

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Sant-samagam Part-1 by मदन मोहन वर्मा - Madan Mohan Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ अनवरी १८५६० आस्तिकता सभी प्रकार के कर्मों का त्याग होने पर जो জা ই? शेष रहता है उसका अनुभव ही आस्तिकता है। जिस प्रकार कमरो के मिटा देने से मकान की सत्ता कुछ नही रहती, उसी प्रकार सब प्रकार के कर्मों का अन्त होने पर कर्ता कुछ नही रहता, कम और कर्ता के मिटते ही अचल नित्य सत्ता रेष रहती है । क्योकि कर्म से किसी प्रकार स्थायी प्रसन्नता नही मिल सकती, इसलिये जब तक कमं से प्रसन्नता मालूम होती हौ तब तक समद्नना चाहिये कि आस्तिकता नही उन्पन्त हुई 1 आस्तिकता को जो अभिलाषा किसी प्रकार मिटाई नही जा आवश्यकता सकती उसका पूरा होना अनिवायं है। क्यों हैं? स्थायी प्रसन्नता सभी प्राणी चाहते हैँ भौर वह्‌ केवल केमे से किसी प्रकार पूरी नहीं हो सकती । इसलिये आस्तिकता की ओर जाने के लिए स्थायी प्रसन्नता का अभिलापी मजबूर हो जाता है। आरितक नास्तिक (१) जो हर काल में है उसको जो जानता জীন ই? है वह आस्तिक है। (२) जो हर काल मे नही है उसको जो मानता है वह नास्तिक है । कर्म से स्थायी _ क्मेरूप बीज से शरी ररूप वृक्ष उत्पन्न होता प्रसन्नता क्यों है और संसाररूप फल लगता है, जिसका नहीं सिलती ? स्वाद सुख और दु.ख है। इसलिये कमें से प्रसन्‍तता नही मिल सकती । कर्म शरीर तथा




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