आधुनिक विश्व इतिहास की रूपरेखा | Aadunik Vishv Itihas Ki Ruprekha

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Book Image : आधुनिक विश्व इतिहास की रूपरेखा - Aadunik Vishv Itihas Ki Ruprekha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुनर्जायरण রর भवनों को चित्रों तथा मूर्तियों से सजाने के लिए कलाकारों को उत्साहित किया गया। परिणामस्वरूप इतालवी नगरों का रूप परिवर्तित होने लगा और वे सम्पूर्ण यूरोप के केर बन गये। . 8 । | | पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने वाले व्यापारी तथा धर्मयुद्धों से वापस জীবনি वाले शूरमा और सामन्त योद्धा वापसी में इतालवी नगरों में थोड़े दिन विश्राम करके फिर आगे बढ़ते थे । ये लोग इतालवी नगरवासियों को मुस्लिम नगरों तथा वहाँ के लोगों की उच्चतर सभ्यता का विवरण देते रहते थे । कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों के अधिकार के समय अधिकांश यूनानी विद्वानों तथा कलाकारों ने इतालवी नगरों में ही आश्रय लिया था। अतः यूनानी ज्ञान-विज्ञान का व्यापक अध्ययन एवं मनन सर्वप्रथम इन्हीं नगरों में हुआ था। मध्ययुग में जब अधिकांश यूरोपीय नगर तथाकथित .अन्धकार में डूबे हुए थे, तब भी इटली के नगर जीवित थे। इतालवी नगर, विशेषकर फ्लोरेन्स, वेनिस और मिलान समृद्ध तथा उनत हो रदे थे परन्तु आल्प्स पर्वत के दूसरी तरफ बसे लोग अब भी अन्धकार में पड़े हुए थे। इतालवी नगरों के निवासी एक-दूसरे के साथ विचारों का आदानं-प्रदान करते थे হুল नगरों की समृद्धि बढ़ी, उनमें से कुछ पवित्र रोमन सम्राट की अधीनता से भी स्वतन्त्र हो गये । अब उनकी तुलना प्राचीन यूनान के नगर राज्यों से की जाने लगी | इन स्वतन्त्र नगरों के सम्पन्न लोगों ने कलाकारों तथा साहित्यकारों को पर्याप्त आश्रय तथा सम्मान दिया। इस दृष्टि से फ्लोरेन्स नगर का मेडिची परिवार सबसे आगे रहा । यही कारण है कि रेनेसाँ काल की कई मंहान्‌ विभूतियों को उत्पन्न करने का श्रेय इतालवी, नगरों को ही है । इनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं--दार्शनिक ` पेटक, कवि दान्त, कथाकार वोक्काचिओ ओर चित्रकार लियोनाडो डी विची, माइकल ऐंजेलो तथा राफेल । | इतालवी नगरों में पुनर्जागरण के प्रारम्भ होने के लिए कुछ अन्य कारण भी थे । इटली प्राचीन रोमन साम्राज्य एवं संस्कृति का प्रतीक था। इतालवी नगरों में प्राचीन रोमन सभ्यता एवं संस्कृति के बहुत से स्मारक अव भी लोगों को उसकी स्मृति का आभास करते थे । पुनर्जागरण को प्राचीन रोमन संस्कृति से प्रेरणा मिलती रही । इस दृष्टि से इतालवी नगर पुनर्जागरण के लिए उपयुक्त प्रारम्भिक क्षेत्र थे । दूसरा कारण यह था कि रोम अब भी सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोपीय ईसाई जगत्‌ का मुख्य केन्द्र था । ईसाई धर्म का सर्वोच्च धर्मगुरु पोष रोम में ही निवास करता था | कुछ पोष भी रेनेसों की भावना से प्रभावित थे और उन्होंने-विख्यात विद्वानों तथा कलाकारों को रोम में बसने के लिए आमन्त्रित किया और उन विद्वानों से यूनानी पाण्डुलिपियों का लेटिन भाषा में . अनुवाद करवाया । इटली के विविध मठों में भी बहुत सारा लेटिन साहित्य भरा था । पोप निकोलस पंचम ने वेटिकन (पोप के निवास स्थान का नाम) पुस्तकालय की स्थापना की और सन्त पीटर के गिरजे का निर्माण करवाया। पोष के इन कार्यों का प्रभाव इटली के अन्य नगरों पर भी पड़ा । वेनिस, फ्लेरेन्स और मिलान के नगरों में बड़े-बड़े विश्वविद्यालय स्थापित किये गये, जिससे लोगों में ज्ञान-विज्ञान के प्रति रुचि का विकास हुआ । इतालवी नगरों में ही पुनर्जागरण के प्रारम्भ होने में इटली की भोगोलिक स्थिति का भी महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। यूरोप के अन्य देशों की तुलना में इटली का प्राचीन यूनानी साम्राज्य तथा संस्कृति से अधिक निकट का सम्पर्क था | इस




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