हीरक प्रवचन [प्रकाश 5] | Hirak Pravchan [Prakash 5]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हीरक प्रवचन [प्रकाश 5] - Hirak Pravchan [Prakash 5]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प. हीरालाल शास्त्री - Pt. Heeralal Shastri

Add Infomation About. Pt. Heeralal Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चिना विचारे काय करने का दुष्परिणाम | ५ का स्वम॑बास हो गया है अतएव उद्धाल करने के लिए आपसे हाथी की माग करने आए हैं.। उत्त लोगों की बाव छुन कर महन्तजी ने कदा- भाइयों ! आपका कद्दना यथाथे है और द्वाथी भी तैयार है परन्तु यह हाथी कुछ दिलों से बिगड़ा हुआ है। इसे अमी-अमी बदतौर के पहाड़ों से बड़ी मुश्किल से लेकर आए हैं। इसलिए मुमे अदेशा है कि जुलस मे जदा हजारो की सख्या में लोग इकट्ठ छोंगे, कहीं चापिस बिगड़ कर यह कुछ नुकसान नहीं कर बेठे | फिर भो आप ले जा सकते हैं। परन्तु हम किसी भी तरह इसके लिए जिम्मेवार नहीं हैं । तब लोगों ने कद्दा-महन्तजी ! आप पर इसकी कोई जिम्मेवरी नहीं होगी। धर्म के प्रताप से सत्र कुछ मौके पर ठीक हो जायेगा । इस प्रकार वे लोग महन्तजी को विश्वास दिला कर हाथी को अपने साथ ले आए। और उस पर से हजारों रुपयों की उछाल की गई। उस हाथी के चारों तरफ हजारों आदमियों की भीड़ होने पर ओर जयनाद-मजन श्रादि का शोरगुल होने पर भी वह इतना सीधा और शान्त प्रकृति का दो गया क्रि उसने तनिक सी भी गडबड नदीं की । यहां तक कि उसके नीचे से बच्चे भौ निकल गए परन्तु उसने किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचाया । इस प्रकार साय कार्य-क्रम पूर्ण हो जाने पर जव लोग उस हाथी को वापिस पहुँचाने गए ओर सारी कैफियत महन्तजी को सुनाई तो इस माजरे को खन कर वे भी बड़े आश्चय में पड गए आर प्रभावित हुए । तो कहने का आशय यह हे कि त्यागी महापुरुषों के नाम में भी बड़ी भारी ताकत रहती हे । अरे ! जीवित महापुरुषों में तो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now