शबनम | Shabanam

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Sabnam by गिरिजाप्रसाद श्रीवास्तव -girijaprasad shreevastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम्हारी भरी प्याली मैने अपने अधरों से स्पश की है ! तुम्हारे केश कलाप को मैने सूँघा है, अपने शीश को मेने तुम्हारे हिमर्वेत वक्त पर रखा है, तुम्हारे गम्भीर छुदय के रहस्यों का मैने उम्र भर अध्ययन किया है, तुम्हारे अधर-माधुय को अपने अधरो मै वसा कर्‌, नयनौ के राग को नयनो म रमाकर तुम्दारी सुरभित आत्मा के अमर सैन्दय्य का रसास्वादन किया है | अब मुझे क़ज़ा का क्‍या डर ? मृत्यु अपने पड्डों से प्रेम की प्याल्ली पर आघात करे, किन्तु वह उसमें के अमृत को नही विखेर सकती जिससे मेरे लव गीले हैं ! तुम्हारी भरी प्याली मेने अपने अधरों से स्पशं की है !




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