अन्तस्तल | Antstal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कौन विचार करता ? मैने दो कदम वदृ कर उसे उठाया
रौर खड़े ही खड़े पी गया, जी हाँ, खडः ही खड !!
पर प्याले बहुत छोटे थे, बहुत ही छोटे । उनमें कुछ
आया नहीं | उस चंम्पे और चाँदनी ने जो उसे शीतल
किया था और उमर मिश्री ने जो उसे मधघुरा दिया था, उससे
कलेजें में ठए्डक पड़ गई | ऐसी ठण्डक त् कभी देखी थी
न चखी | इसके बाद में मूर्ख की तरह प्याला लिये उसकी
ओर' देखने लगा | उसने कहा-और लोगे ? मैंने कहा-
बहुत ही प्यासा हूँ, और प्याले बहुत ही छोटें हैं, तिसपर
उनमें टू'टना निकला हुंआ है, इनमें आता ही कितनां है,
क्या और है ९”
. उसने कहा-- बहुत है, पर भीतर है, घड़ों का मुह
खोलना पड़ेगा--क्या बहुत प्यासे हो ९”
`` सभ्यता भांड में गई । कभी खातिरदारी का वोमे
किसी पर नहीं रखता था। पराये सामने सदा सकोध से
. रहता था--पर उस दिन निलेज्ज बन गया । मैंने ललचा कर
. कह ही दिया--“बहुत प्यासा ह, क्या ज्याद्ा तकलीफ होगी ?
न हो तो जाने दो, इन प्यालियों सें आयाही कितना ९”
` उखनं कद्मा--“तो चते घर, मागं - मे खड़े खड़े क्यो ?
पास द्वी तो घर है”। में पीछे दो लिया ।
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