अन्तस्तल | Antstal

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Aant Isthal by पद्दमसिंघ शर्मा -paddamsingh sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कौन विचार करता ? मैने दो कदम वदृ कर उसे उठाया रौर खड़े ही खड़े पी गया, जी हाँ, खडः ही खड !! पर प्याले बहुत छोटे थे, बहुत ही छोटे । उनमें कुछ आया नहीं | उस चंम्पे और चाँदनी ने जो उसे शीतल किया था और उमर मिश्री ने जो उसे मधघुरा दिया था, उससे कलेजें में ठए्डक पड़ गई | ऐसी ठण्डक त्‌ कभी देखी थी न चखी | इसके बाद में मूर्ख की तरह प्याला लिये उसकी ओर' देखने लगा | उसने कहा-और लोगे ? मैंने कहा- बहुत ही प्यासा हूँ, और प्याले बहुत ही छोटें हैं, तिसपर उनमें टू'टना निकला हुंआ है, इनमें आता ही कितनां है, क्या और है ९” . उसने कहा-- बहुत है, पर भीतर है, घड़ों का मुह खोलना पड़ेगा--क्या बहुत प्यासे हो ९” `` सभ्यता भांड में गई । कभी खातिरदारी का वोमे किसी पर नहीं रखता था। पराये सामने सदा सकोध से . रहता था--पर उस दिन निलेज्ज बन गया । मैंने ललचा कर . कह ही दिया--“बहुत प्यासा ह, क्या ज्याद्‌ा तकलीफ होगी ? न हो तो जाने दो, इन प्यालियों सें आयाही कितना ९” ` उखनं कद्मा--“तो चते घर, मागं - मे खड़े खड़े क्यो ? पास द्वी तो घर है”। में पीछे दो लिया । / |




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