संत-सुधा-सार | Sant Sudha Sar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : संत-सुधा-सार  - Sant Sudha Sar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वियोगी हरि - Viyogi Hari

Add Infomation AboutViyogi Hari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
३ प्रन वियोगी हरिजी के इस संग्रह के बारे मे मुझे कुछु कहना चाहिए । पहली जात तो म यह कहूँगा कि हिन्दी के बहुत सारे स्तों की क्णी का अध्ययन मे नही क्र खकरा ह| छिफं चार कृतियों मेरे नसीव मं छ हं. ल्निदो ये तुलसीदास की ठो झृतियों । इन टोनां छत्तियो লা সুক্ষ पड़ा हैं। तुलसीढास की शेली में बोलना हो तो वही कहना पढेगा कि, एक है “रा” और दूसरा दे “स” और टोनों मिलकर ठुलतीगाम का रास” जनता है ठोनों इतियों परत्पर-पूरक हैं। इनके अलावा, गुद नानक का जपुल्नी प्रीर गुरु अज्ञ न की सुखमनी । इस संग्रह में जपुजी का, श्रर्थ के साथ, प्रग उद्धस्ण किया गया है | यह सुमे अच्छा लगा। मे जत्र पॉच-छुह मदने शारणाथिप्र के काम म॑ं लगा था तन गेज सुबश्ह जपुजी वा पाठ किया करता था। इुछु दिन नागरी लिपि में तिया, फिर गुर्मुखी में पढुता रह । यह एक पग्पिण कृति है । याने साधनमार्ग का पूरा चित्र, आदि से अंदतक इममे थोडे म मिल जाता है। इसकी तुलना शानदेच के मराठी इरिपाठ से हे सक्षती है। सिनो वण माला का परिचय हे, ऐसा हरेक देहाती हरिपाठ को पढ ही लेता है । चल्कि जो अक्षर भी नहीं सीखा वह भी दसरों से सीखकर उसे क्ठ बग्ता ই। गुद अजु न की छुखमनी बच्चपि एक छोटी ही पुत्तक हे, तथापि सच्ररूप नहीं व विवस्णरूप ই | ভন্ল पुनरक्ति काफी दे । लेकिन उसकी शक्ति भी उस पुनर्दक्त में है। उसका यह एक सलोऊ जेल में कई दिनोंतक् माजन के पहले म बोलता था, जेंसा कि सिक्‍्तखों में रिवाज ই काम क्रोध अरु लोभ मोह विन्सि जाय अहमेंब, नानक प्रयु शरणगती कर प्रसाद गुरुदेव । भोजन के लिए. “प्रसाद” संज्ञा दिंदुत्तान की हर मापा में मिचदर्ती ই। इन चार छतियों के अलावा, छर्ी का भेरा सारा हिन्दी-अध्ययन श्र ख्त्‌ है, याने थोड़ा इधर देख लिया, थोडा उघर देख लिया । नामदेव के मराठी भजनों में से कुछ चयन मेने किया था, उसकी पूर्ति में उनके हिन्दी पद्मों का भी अवलोकन अन्ध साहिब से कया था | बहरे के कार्नोतक भी जो पहुँच गई है उस कवीर-बाणी वा रुके कुछ सहज परिचय न हनआ हो, यह देसे हो उतता है ? तकाराम की बार पर कुछ वानीकी से देखने का দীক্ষা मुझे मिला हे। रामायण ओर विनयपत्रिका, ॐ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now