मै भूल नहीं सकता | Main Bhool Nahi Sakta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माताजी शप्‌ मामला है ?” मालूम हुआ कि चाय के प्रचार करने के लिए चाय-वगीचों के मालिको की तरफ से गगा के तट पर कैम्प लगा है, वहा चाय मृफ्त নাতী जा रही है। उनका तो काम चाय के प्रचार का था, लोगों को मुफ्त चाय पिछाते थे, ताकि आदत पड जाय । माताजी का विचार था कि दूघ- दही खाने की देन मेँ आवश्यकता ह गौर चाय से हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य खराब हो जाता है, भूख कम हो जाती है । मुझसे कहने र्गी कि तुम सरकार वाले थोड़ी आमदनी के लिए भारत का सत्यानाग करते हो । माताजी की बोलचाल मीठी और गंभीर होती थी । व्यथं वार्तखिप मौर कोरे बकवास से उनको घृणा थी । अन्त समय तक उत्सुक थी कि वह कुछ नई बाते सीखें और जानकारी को बढावें । शान्ति की मूत्ति थी | मेने कभी उन्हे कोधित हते नही देखा । न कभी हषं होता था, न देष करती थी। सुख-दुख में समान रहती थी। रोने-घोने की आदत नहीं थी। घर मे वहुत गादिया हुई, लड़कियों के विदा होने के समय घर-भर रोता है गौर आसू गिराता ह, परन्तु माताजी वैसी-की-वैसी ही जान्त रहती यी । मैने कभी मी एक आंसू गिराते उन्हे नही देखा और अगर बेटी, पोती माताजी से अरग होते समय रोती थी तो उसको माताजी मना करती थी । माताजी ने दुख भी उठाए, बड़ी प्यारी पाली-पोसी व्याहता वेटी-पोती उनके सामने गृजर गई , छेकिन उस सदमे को भी उन्होनें बहुत सत्र, গান্বি तथा हिम्मत के साथ झेला । हरेक के साथ उनका बर्ताव अच्छा होता था। मैके में एक भाई गोद आया था 1 ननद-मौजाई मे मेने एसा मेक नही देखा । र्गता था, जैसे दौ सगी बहने हो । मेरी मामी मुझे वेटा समझती थी और में उनको माता के समान मानता था । उन्दीके धर जाकर मेने लाहौर में ५ वर्ष रहकर वी० ए० पास किया । मेरे मामूजी की सन्तान गौर उनके जमाई दीवान वहादुर ब्रजमोहननाथ जुत्शी को मेरी माताजी से जैसा प्रेम था उसका में वर्णन नही कर सकता । [अपने घर में माताजी अपनी बेटियों से ज्यादा बहुओ को प्यार करती थी । कहती थी कि बेटियां तो दूसरो के




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