देश व्रतोद्योतनम् | Desh Vratodyotanam

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Desh Vratodyotanam by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११९ । करना चादिए । आत्मा प्रभुतासंपन्न हे, जिसे उसकी प्रभुता का विश्वास नहीं हे ओर अल्पह्ता तथा रागद्भष की प्रभुता मानताहोतो उसे भगवान की प्रभुता ज्ञात नहीं होती । गाथा-३ बीज॑ मोक्षतरोईशं भवतरोमिथ्यात्वमाहुर्जिनाः । प्राप्तायां दि तन्युधशषुभिरलं यलो बिधेयो बुधैः ॥ संसारे बहुयोनिजालजरिले भ्राम्यन कुकर्माचृत : । क्र प्राणी रभते महत्यपि गते कले हि तां तामिह ।२॥ ज्ञान स्वभावी आत्माका पूर्ण विश्वास ही पूर्ण पवित्र मोक्ष दह्माका बीज है। आचार्य पद्चनंदि कहते हैं कि आत्माकी पूर्ण अमृत आनन्द दशा मोक्षरूपी वृक्ष दै, उसका बीज सम्यग्दर्शन है । जेसे आम का बीज उसकी गुठली ही होती है लेकिन आकफछ नहीं होता उसी प्रकार परमानंद दशा, अरागी, बीतरागी, विज्ञान दशाका बीज सम्यग्द्शन है। राग भाव छोड़कर आत्माकी निर्विकल्प श्रद्धा सम्यकदशेन है । एेसा सम्यकद्शन द्वोनेके पश्चात श्राव- করন होता है। मोक्षरूपी वृक्षका बीज देव, शास्त्र, गुरुकी कृपा या उनका निमित्त या पुण्य-पाप नहीं है अपितु सम्यरदशेन ही है । स्वयं ही अपना सम्यरदर्शन प्रकट करे तो देव-गुरु-शास्त्र निमित्त कद्दलाते हैं। सम्प्रदाय या कुछमें जन्म लेनेसे ही कोई




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