अदृष्टपरीक्षा | Adrishtpariksha
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
24
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11
यादशेन तु भावन यद्यस्कम निषेबते ।
ताइशन शरीरण तत्तत्फलुमुपाश्षुत ॥ (१२-८१)
হার মনু: |
न गाथा गाथिनं शास्ति बहु चदपि गायति ।
प्रकतं यान्ति मूतानि कुरिङ्गशकुनियथा ॥
जन्मान्तरसहसंपु बुद्धियों भाविता पुरा ।
तामेव भजते जन्तु उपदेशों निरथक' ॥
इति (महाभारते सभा-४४) व्यासः ॥
अन्नायमथ:--कुलिज्ञभकुनिनाम कश्चितक्षी साहस मा
कुरु साहस मा कुरु' इति सबेदा सवा प्रत्युपदिशन् ध्वय पुनः पटि-
तमत्तेमकुम्भम्य मीमम्पुरन्रखदरिखाशिखरम्य सिंहम्य जुम्भासमय
वदन प्रविश्य दंष्टान्तराढू सम मांसशकलूमुद्धृत्य भक्षयन्नास्ते इति ॥
भीयते च---
सह चेष्टत स्वम्या. प्रकृतः ज्ञानवानपि |
प्रकृति यान्ति भूताने निग्नह # करिप्यति ॥ इति ॥
शाखकृता निग्रहः निबन्धः किं करिप्याति निरथक इत्यथं;। इत्यादी-
नि वचनानि पुरुषरकारलक्षणं भ्वातच्रयं प्रतिवघ्नन्ताति।
अयमत्र समाधिः मगवतैव समुपदिश्यते | यथा--
इन्द्रियस्यन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषी व्यवम्थितों ।
तयोन वशमागच्छेत् तो ह्यस्य परिपन्थिनो ॥
रति । अयमथः--प्रकृतिर्दिं प्राचीनवासनापरपयांया वायूदकादि-
वत्पुरुष॑ न प्रेरयति । अपितर्हि रागादिक जनयिला तद्रारा काये
कारयति । प्राचीनवासनया शुम अशुभे वा कमणि रागादिजननऽपि
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