पुरुषार्थसिद्धयुपाय : | Purusharthsiddhyupay

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Purusharthsiddhyupay by शिरोमणि टोडरमल्ल - Shiromani Todarmall

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) प्रस्तावना इस ग्रन्थ का नाम पुरुषाथे सिद्धयुपाय हे-वास्तव में यह “यथा नाम तथा गुणः” युक्ति के अनुसार पुरुष अर्थाव आत्मा के अथ प्रयोजन की सिद्धि के उपाय, तथा जैन सिद्धान्त के गृह रहस्यों का भण्डार है। मिथ्या श्रद्धान को नष्ट कर अपने आत्मा के स्वरूप में स्थिर होना पुरुषार्थ की सिद्धि का उपाय है-अर्थात्‌ सम्य- रदर्शन सम्पर ब्रान सम्यक्‌ चारित्र की एकताहप मोक्षमार्ग ही पुरुषाथ सिद्ध उपाय है जैसा इस ग्रन्थ के कर्ता अचायबर श्रीमद्‌ अमृतचन्द्र जी ने गाथा ने० ९ से २६ में प्रगट किया है। वैसे तो इस ग्रेय में सम्यक्‌ दशेन,सम्यक्‌ ज्ञान, सम्यक्‌ चारित्र का खरूप एक निराले ही ढड़ से वर्णन किया गया है। परन्तु पूज्यवर आचार्य ने हिंसा अनृत स्तेय अब्रह्म परिग्रह पांचों ही पापों को निहायत खूबी के साथ [हईसारूप सिद्ध किया रै। वास्तव में अहिंसा धर्म के सम्बन्ध में यह अपनी कोटी का एक अनूठा ही ग्रेथ है । श्रीमद अम्नतचन्द्र जी विक्रम की दशमी शताब्दी में हुए हैं भाप अपने सपय के एक उच्च-कोटी के विद्वान ये। पदावालियों से जान पढ़ता है कि जिस नंदिसड के आचार्यों में प्रातः स्मरणीय परम पूज्य आचार्य श्रीकुन्दकुन्द स्वामी हुए हैं आपने भी उसी संघ को बहुत समय तक छुशोभित किया । श्रीकुन्दकुन्द खामी के प्रसिद्ध ग्रन्थ पैथास्तिका ये, प्रदचनसार, समयसार पर आपकी परमोक्षम टीकांय मिलती हैं। इससे आपकी विद्रत्ता, आपका सड्ढ वात्सस्य, तथा श्रद्धाभाव का भी भली भांति परिचय मिल जाता है। आपकी सब टीकाये अयन्त बोधगम्य, भाव व्यक्षक और प्रमाणीक गिनी जाती हैं । पुरुषार्थ सिद्धियुपाय ग्रेथ की भाषा टीकायें कई हैं। परस्तु में ने उनमें से खर्गीय प° गोडरमल जी तथा दौलतराम जी कृत और पे० नाथूराम जी प्रेमी कृत टीकाओं को ही पढ़ा है। प० टोढरमल जी की टीका को में ने रोहतक जैन मेदिर सराय मोहा की शाख सभा मेँ नवम्बर सन १९२९ से फवैरी सन्‌ १९३० तक्‌ पटृकर पनाया । उस समय इस ग्रन्थ को पढ़कर जैन सिद्धांत के रहस्य का बड़ा




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