समाज , राज्य और सरकार | Samaj Rajya Aur Sarkar

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Samaj Rajya Aur Sarkar  by एस . एन . झा - S . N . Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 समाज राज्य और सरकार अध्ययन में समूह, संस्था और व्यक्ति के प्रभुत्व-संरचना का मुख्य स्थान रहता है। राज्य और सरकार समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखते है ओर कोई भी सामाजिक अध्ययन इनका अनादर नहीं कर सकता | सामाजिक विश्लेषण राजनीतिक संस्थाओं के कार्य को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत करता है। राजनीतिक समाजशासत्र (पोलिटिकल सोशियोलोजी) का एक विषय के रूप में सामने आना इन दोनों विषयों के घनिष्ठ . संबंध का प्रमाण है। राजनीति विज्ञान में सत्ता मूलक संबंध और राजनीति व्यवहार पर जो बल दिया जाने लगा है उससे ये दोनों विषय और नजदीक आए हैं। ` नीतिशाख्र से संबंधः नीतिशाख्र मुख्यतः व्यक्ति के लिए अच्छे जीवन की प्राप्ति से संबंध रखता है। इसका औचित्य नैतिकता के आधार पर आंका जाता है और फिर यह निर्धारित किया जाता है कि किन लक्ष्यों की कामना की जाए और उनकी प्राप्ति के लिए किन साधनों का प्रयोग किया जाएं। मानव को जीवन में परम हित” की प्राप्ति के लिए क्‍या करना चाहिए ? इन सब विचारों में व्यक्ति मुख्यतः निजी जीवन को ध्यान में रखता है। दूसरी तरफ राजनीति का संबंध सामूहिक हित से है। इसी संदर्भ में जॉन स्टुअर्ट मिल ओर दूसरे उपयोगिताबादी “सबसे बड़े समूह का सर्वाधिक हित'' को राजनीति का लक्ष्य मानते हैं । कल्याणकारी समाज की सृष्टि के लिए किन संस्थाओं को बनाया जाए,उनका संगठन किस प्रकार का हो, और उन्हें क्रियान्वित कैसे किया जाए ? इन्हीं संदर्भों में नीति-शास्र और राजनीति विज्ञान में पारस्परिक संबंध होता है | अंत में राजनीतिक संगठन को इसी कसौटी पर आँका जाता है बह व्यक्ति के लिए एक अच्छे जीवन को किस हद तक सुनिश्चित करता है । राजनीतिक व्यवस्था अच्छे जीवन की सामान्य स्थिति लोगों को उपलब्ध करके इस दिशा में काम करती है। कुछ चीजें अकेले व्यक्ति की पहुँच के बाहर होती हैं। इनके लिए संगठित समाज पर निर्भर होना पड़ता है। युद्ध, दासता, गरीबी एव अख़ाध्थ्यकारी परिस्थितियों से बचना, सुरक्षा, शिक्षा के अवसर, सतंत्रता, एवं अवकाश के अवसर, उपलब्ध कराना ; ये ऐसी सुविधाओं के कुछ उदाहरण हैं जिनके लिए व्यक्ति को संगठित समाज पर निर्भर होना पड़ता है। राज्य का लक्ष्य यह होता है कि ये सुविधाएँ सभी को उपलब्ध हों | लेकिन समाज में कुछ ऐसे बर्ग होते हैं जिनके लिए इन सुख-सुविधाओं के वितरण में पक्षपात्त होता है। प्रायः सभी समाजों में थोड़ी बहुत अउणानता पाई जाती है। इस सामान्य स्थिति का विश्लेषण भिन्‍न सिद्धांतों 'और विचारधाराओं ने किया है और समाधान भी सुझाए जाते हैं। लेकिन असमानता किसी न किसी अनुपात में बनी रहती है। राजनीतिक प्रक्रिया सतत्‌ एक से अधिक हित को ध्यान में रखती है, लेकिन कभी सब को सम्मिलित नहीं कर पाती। रस्किन ने इस प्रसंग में अंत की ओर” ((॥10 116 । 391) की बात की थी। गाँधीवादी ओर सर्वोदय नेताओं द्वारा समर्थित “अंत्योदय” इसी लक्ष्य की ओर ध्यान आकर्षित करता है----बिना किसी अपवाद के समाज के सभी वर्गों तक पहुँचना। इस विचारधारा में गरीबों में भी सबसे गरीब के हित पर बल दिया जाता है। ৃ प्राकृतिक अधिकार के सिद्धांत को राजनीति शास्त्र में इतना महत्वपूर्ण इसलिए माना गया है कि ये अच्छे जीवन की प्राप्त के लिए आवश्यक स्थितियों की कल्पना करते हैं। लोगों के लिए प्राकृतिक अधिकार इसीलिए आवश्यक हैँ कि उनकी आवश्यकताएं भी प्राकृतिक हैं। यह तर्क,यह सुझाव देता है कि जो एक व्यक्ति के लिए हितकारी है, वह सब के लिए हितकारी है। राज्यतंत्र से यह अपेक्षा की जाती है कि ऐसे अधिकारों की गांरटी वह लोगों को प्रदान्‌ करेगा । राज्यतंत्र को सही मापदण्ड अक्सर यह होता है कि कितने लोग वस्तुतः अधिकारों का उपभोग करते हैं। समाज में संगठित सत्ता के भंडार की हैसियत से, राज्यतेत्र इस लक्ष्य की प्राप्ति नकारात्मक और संकारात्मक दोनों तरीकों से करता है। एक तरफ तो वह लोगों को औरों के अधिकारों के अतिक्रमण से रोकता है, और साथ ही सामान्य हित के क्रियाकलापों का प्रोत्साहित करता है, जिन्हें व्यक्ति अपने-आप उपलब्ध नहीं कर सकता। इस तरह व्यक्ति दे. लिए अच्छे जीवन प्ले संबंधित नैतिक मान्यता ही अंततः राजनीतिक व्यवस्था के कार्यों का पथ प्रदर्शन करती है। सरकार द्वारा बताए गए कानून आखिर इन्हीं लक्ष्यों की आप्ति के लिये होते हैं। जब नागरिक राजनीतिक व्यवस्था के कार्य को लोकहित की दृष्टि से स्वीकार करते हैं, तो वे स्वेच्छा से उन्हें मानने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। यह वैधता की _ प्रक्रिया में सहायक होता है। व्यक्ति और राजनीतिक व्यवस्था, दोनों अपने कार्य में नैतिक मापदण्ड के अनुसरण में अपने को सीमित पाते हैं। ' हर सम्रय कुछ ऐसी शक्तियां होती हैं जो व्यक्ति और राज्यतंत्र की शक्ति से बाहर होती हैं और यही उनके कार्यों को सीमित




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