कुंद माला | Kundmala

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Kundmala by वागीश्वर विद्यालंकार - Vagishvar Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ ) হা, हमारे स्मृति ग्रन्थों में सन्‍्तान तथा सहधमीचरण-ये दो दिवाह के फल प्रतिपादन किये गये हं । यज्ञ करने का अधिकार भी पति को पत्नी के साथी है प्रथक्‌ नदीं । नीचे लिखि पा में कविने अपने कमेकाण्ड ज्ञान का भी परिचय दिया हे । देखये- सुत, हुत,-ये दो फल पत्नी के बतलाति है पर्डित । पहला तुम से मिला, दुसरा भी देकर गृह मण्डित ॥ ङुन्द्‌ ० च्रङ्क ६ । दैव-योग से हुवे, आपके, शुभ-दशन से प्यारी-- शुद्ध प्रकाशित हुई, यज्ञ मै बनी पुनः अधिकारी ॥ कुन्द ° श्रद्ध ६। घ. कवि को प्रणव ओझार का मी ज्ञान दै-- मैं ही हैं, ओड्आार सहचरी-कहते हैं सब मुनिजन । मुझ से ही उत्पन्न हुवा है सकल चरचर त्रिभुवन ॥ कुन्द्‌० श्रद्ध ६। ङ. बौद्धघम में वालकपन से ही भिकछ दो जाना षठ सममा जाता दै, किन्तु हिन्दू-घम में प्रत्येक आश्रम में क्रम से जाने का गौरव दे। कुन्दमाला का स्वयिता मी आश्रम र का पक्षपाती प्रतीत द्वाता टै, मिछु-घम का नहीं। হা अन्न,




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