छ : एकांकी | Chha Ikanki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.361 GB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उपेन्द्रनाथ (अश्क, १३.
[ बेचेनो से कमर मे घूमता है। सुरेन्द्र कुर्ता से पीठ लगाये छत में
हिलते हुए फ़ानूस को देख रहा है । |
-- सुरेन्द्र, यह मामूलो बुखार नहीं, यह गले की तकलीक साधारण
+ नहीं, मेरा तो दिल डर रहा है, कद्टीं अपनो मा की तरह अरुण भो तो
घोखा न दे जायगा ? (गला भर आता है) तुमने उसे नहीं देखा,
साँस लेने में उसे कितना कष्ट द्वो रहा है ! |
[ हवा को साँय-साँय ओर मेंह के थपेड़े ]
--यह वर्षा, यह आँधी, यह मेर मन में होल पेदा कर रहे हैं । कुछ
अनिष्टहोने को है। प्रकृति का यह भयानक खेल, यह मौत की
आवाज़ें. ..
[ बिजली ज़ोर से कड़क उठती है । दरवाज़ा जरा-घा खुलता है । मा
र = कः
ग
मकती हे । |
मा--रोशी, दरवाज़ा खोलो । आओ, देखो शायद डाक्टर आया है।
[ दरवाजा बन्द करके चली आती है । ]
रोशन--सुरेन्द्र. . .
[ सुरेन्द्र तेज्ञी से जाता है। रौशन बेचेनी से कमरे में घुमता है । सुरेन्द्र
के साथ डाक्टर धभोर भाषो प्रवेश करते हैं । भाषी के हाथ में
इंजेक्शन का सामान हे । ]
डाक्टर व्या द्वाल है बच्चे का ?
[ बरसातो उत्तारकर खूँटी पर टाँगता है और रूमाल জ জুঁই
पोंछता है । ] |
रोशन--झापको भाषी ने बताया होगा। मेरा तो होसला टूट रहद्दा
* है। कल सुबह उसे कुछ ज्वर हुआ ओर साँस में तकलीफ़ हो गई और
आज तो वह बेहोश-सा पड़ा है, जेसे अन्तिम सासों को जाने से रोक
: रखने का भरसक प्रयास कर रहा है ।
डाक्टर--चलो, चलकर देखता हूँ ।
: [ सव बीमार के कमरे में चले जाते हैं। बाहर द्रवाज़े के खटखटाने
की आवाज़ आती है। मा तेज़ी से प्रवेश करती है। |
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