छ : एकांकी | Chha Ikanki

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Chha Ikanki by प्रकाश चन्द्र गुप्त - Prakash Chandra Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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! उपेन्द्रनाथ (अश्क, १३. [ बेचेनो से कमर मे घूमता है। सुरेन्द्र कुर्ता से पीठ लगाये छत में हिलते हुए फ़ानूस को देख रहा है । | -- सुरेन्द्र, यह मामूलो बुखार नहीं, यह गले की तकलीक साधारण + नहीं, मेरा तो दिल डर रहा है, कद्टीं अपनो मा की तरह अरुण भो तो घोखा न दे जायगा ? (गला भर आता है) तुमने उसे नहीं देखा, साँस लेने में उसे कितना कष्ट द्वो रहा है ! | [ हवा को साँय-साँय ओर मेंह के थपेड़े ] --यह वर्षा, यह आँधी, यह मेर मन में होल पेदा कर रहे हैं । कुछ अनिष्टहोने को है। प्रकृति का यह भयानक खेल, यह मौत की आवाज़ें. .. [ बिजली ज़ोर से कड़क उठती है । दरवाज़ा जरा-घा खुलता है । मा र = कः ग मकती हे । | मा--रोशी, दरवाज़ा खोलो । आओ, देखो शायद डाक्टर आया है। [ दरवाजा बन्द करके चली आती है । ] रोशन--सुरेन्द्र. . . [ सुरेन्द्र तेज्ञी से जाता है। रौशन बेचेनी से कमरे में घुमता है । सुरेन्द्र के साथ डाक्टर धभोर भाषो प्रवेश करते हैं । भाषी के हाथ में इंजेक्शन का सामान हे । ] डाक्टर व्या द्वाल है बच्चे का ? [ बरसातो उत्तारकर खूँटी पर टाँगता है और रूमाल জ জুঁই पोंछता है । ] | रोशन--झापको भाषी ने बताया होगा। मेरा तो होसला टूट रहद्दा * है। कल सुबह उसे कुछ ज्वर हुआ ओर साँस में तकलीफ़ हो गई और आज तो वह बेहोश-सा पड़ा है, जेसे अन्तिम सासों को जाने से रोक : रखने का भरसक प्रयास कर रहा है । डाक्टर--चलो, चलकर देखता हूँ । : [ सव बीमार के कमरे में चले जाते हैं। बाहर द्रवाज़े के खटखटाने की आवाज़ आती है। मा तेज़ी से प्रवेश करती है। |




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