भाषा त्रिमासिक | Bhasha Trimasik
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दौलत सिंह कोठारी - Daulat Singh Kothari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपना कर ही समृद्ध हुई हे। कोई
कारण नहीं कि हम भी अपनी भाषाओं
का भण्डार अन्य भाषाओं के वेज्ञानिक
ओर अन्य साहित्य को अनूदित करके
समृद्ध न बनाएँ । यदि हमारी भाषाओं
में विदयाथियों को अच्छी से अच्छी
पुस्तक पढ़ने को मिल सकें (कुछ समय
तक अँग्रेज़ी की पुस्तकें भी वे पढ़ेंगे) तो
फिर शिक्षा के स्तर के गिरने का कोई
भय नहीं रहेगा। साथ ही उन पुस्तकों को
सहायता से हमारे अध्यापकगण भी
भारतीय भाषाओं के माध्यम से सरलता-
पुरक अध्यापन कायं कर सकंगे । यही
कारण है कि हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने
विश्वविद्यालय स्तर की पाठय-पुस्तकों को
लिखवाने और अनूदित कराने के संबंध में
एक मह॒ती योजना बनाई है । इस योजना
के अनुसार भारत सरकार उन सभी
विश्वविद्यालयों और राज्य-शासनों को
इस कार्य के लिए शतप्रतिशत अनुदान
देने को तैयार है जो इसमें भाग लेना
चाहें । लगभग 200 पुस्तकें इस कार्य के
लिए चुन ली गई हैं तथा विश्वविद्यालयों
और राज्य सरकारों को बाँट दी गई हें।
इन में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत
शब्दावली का प्रयोग अनिवायं रूप से
होगा । आशा है कि समस्त विश्व-
विद्यालय इस योजना में अधिक से
अधिक भाग लेंगे और उनके प्रयत्नों के
फलस्वरूप निकट भविष्य में ही हिंदी में
इतना उच्चकोटि का वैज्ञानिक ओर
अन्य साहित्य निर्मित हो जाएगा, कि
फिर यह न कहा जा सकेगा कि विश्व-
विद्यालय स्तर पर किसी भारतीय
भाषा के माध्यम से पढ़ाई नहीं हो
सकती; क्योकि इन भाषाओं में वांछित
साहित्य ही उपलब्ध नहीं है ।
इस काये के करने में हम सब पर
एक बड़ी भारी ज़िम्मेदारी है। यदि यह
काम ठीक से किया गया तो हम सरलता
से सफलता की एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी
पर चढ़ते जाएँगे, कितु यदि आरम्भ में
ही यह कार्य ठीक से न किया जा सका
तो हम उनकी शंकाओं को बल देंगे. जो
यह कहते हे कि भारतीय भाषाओं में वह
शक्ति ही नहीं कि वे आज के विचार
और विज्ञान का भार उठा सकें। जैसा
कि हम सभी जानते हें विज्ञान की भाषा
बोल-चाल की भाषा से अलग होती है ।
उसे विज्ञान के विशेषज्ञों के सिवा कभी
केभी तो और लोग समझ भी नहीं पाते ।
इस संबंध में अनेक उदाहरण दिए जा
सकते हैं कितु में समझता हूँ कि
सभी इस तथ्य से परिचित हें और
उदाहरण देने की कोई आवश्यकता
नहीं । जब अंग्रेजी ओौर अन्य भाषाओं में
यह बात है, जिनका कि इस क्षेत्र में
काफ़ी असे से उपयोग हो रहा है, तब
भारतीय भाषाओं के बारे में तो कुछ
कहने की ज़रूरत ही नहीं। हममें से
अधिकांश ने अँग्रेज़ी के द्वारा शिक्षा पाई
है और इसलिए जव कभी हमे जटिल
अथवा दुरूह् विषयों पर लिखना पड़ता
हैतो हमारी भाषा मे अंग्रेजी के वाक्य
विन्यास, शब्द-रचना, मुहावरे आदि
बरबस आ जाते हं लेकिन अंग्रेजी अभि-
भाता
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