कोष्ठबद्वता | Koshthbadwata

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Koshthbadwata by ठाकुरदत्त शर्म्मा - Thakurdutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) 52 | ९ भ ৬২ ২১ £ ञे । ५, खराबी हो सकती है, सम्भव दे, मूका, हिरदय, ओर उन्मादं हो जावे | सेकम या सिगमाइडफलेक्स्चर के बढ़ जाने से अद्धागवात, पक्षाघात, कम्पवातादि हो सकता हे | वेद्यक परीक्षा, जिस से यह्द मल संग्रह मालूम हो सकता है, बहुत सरल है । संक्षिप्त वणेन। उपयुक्त सर्वे लेख को यदि आप ने विचार पूर्वक पढ़ लिया हे, तो आप समझ गए होगे, कि कोष्टबद्धता क्‍या वस्तु हैं” कबज इस कोलन में उचित मात्रा से अधिक मरू का जमा हो जाना, कोलन के चन्र के गढ़ों के बीच तो थोड़ा सा ई#छ छगा रहता हे परन्तु जब से बढना आरस्म होता है, और चक्र। के साथ भी लगता जाता हे, कबज़ आरस्म हो जाता है, कोलून का छिद्र जिस के भीतर से मर निकलता है, दिन प्रति दिन छोटा होता जाता हे । अन्तिम सुदे पेदा होने आरण्भ हो जाते हैं। खट क्या हैं? इम को सहज में समझा जा सकता है, छोटी अतड़ियों से मल बड़ी आंतों में स्वस्थ मनुष्यों के छगातार प्रविष्ठ होता रहता है, ऐसा होने के वास्ते दोनों के मध्य एक छिद्र हे जिस पर एक खिङ्की लगी ह है, जो कि उस ओर को खुछती है, जब मल उस ओर जाना चाहे, और यदि बड़ी आंतों से कोई चीज आनी चाहे तो यह खि- ड्की तुरन्त बन्द हो जाती है । जव कोलन पुराने मल के कारण इतना भरा होता है, कि इस खिड़की पर उसका दबाव पड़ता है, तो इस दशा में ऐसा होता है, कि उधर से छोटी आंतों का मल जाता रहता है, खिड़की खुलती है, ऊपर से जो दबाव पड़ता हे, और खिड़की इस भय से कि कोई वस्तु उपर से नीये नं अ! जवे, तुरन्त बन्द हो जाती है, इस प्रकार छोटी आंतों में से मछ कई भागा मे प्रावेश होता हैं, यह धत्यक्ष भाग एक सुदा ई, प्रत्यक अलग २ धक्रेला हुआ गुदा की आ- आता है ॥ सुद्दे--यह कबज ( ओर सखुद्दे ) या तो आंतो की शक्ति की कमी से, या मल अस्प मात्रा मे मने के कारण, उत्पन्न होते दहे, इस में घिविध मत हैं, कोई मलुष्य दो बार शोच आवश्यक समझता




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