ज़िच | Zich

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Zich by मम्मधनाथ गुप्त - Mammadhanath Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १२ जिच हैं, दूसरी तरफ आपसे बढ़कर खत्री जाति का कोई अपमान करनेवाला नहीं है। आप जब किसी भी स्त्री को जीवन-संगिनी बनाता नहीं चाहते, ओर सब ফিতা কী লভুল समभने पर उतारू हैं, तो आपसे बढ़कर स््रो जाति का द्वेष्टा कौन हो सकता है । इसका अर्थ यह है कि आप स्री जाति को वहीं पर सकस क्र श्राधात कर रहे है, जहाँ उसका मर्मस्थल है, और जहां आधात उसके लिये सबसे अधिक असहनीय है। जो कुछ भो हो मेने अपनी परिस्थिति स्पष्ट कर दी | में आपकी ओर खिंचती जरूर हूँ, किन्तु सच बात तो यह है कि में आपको सममः न सकी । सुमे ऐसा कई बार ज्षात हुआ कि आप मुझे बड़े ज़ोर से खींच रहे हैं, फिर जब पास गई तो आपने मुह फर लिया | इस रहस्यमय व्यवहार के तल्ले क्या है और आप क्‍या में बिलकुल समझ न सकी । मेरे अन्दर जो ज्वालामुखी अब तक सोइ हुईं थी, वह भड़क चुकी है, वह अब दिशा-ल्लान-शून्य हो गई है। अपने ऊपर मेरा संयम जाता रहा है, न मालूम में अब कया कर डाल | यदि आपने मेरी पूजा स्वीकार नकीतो पता नहीं में क्या हो जाऊँ। और एक बात कहूँ, यह ज्वालामुखी आप ही ने उभाड़ी है। में अच्छी खासी थी, पढ़ाई समाप्त होने पर चांची तथा पिताजी जिसके गले সু ইবি, चाहे वह बन्दर ही होता, में उसी के साथ सुखी रहती, किन्तु आप ही ने मुके विद्रोह करना सिखलाया | ओर अब जब मेरे हृदय समुद्र में उफान आया तो आप मटपट भाग रहे है | यही आपकी क्रान्ति है ? जाने दीजिये, सच बात यह है, में आपके बगैर जी नहीं सकती हूँ। अर्थात्‌ अब मर सकती हूँ । किन्तु औरतों के लिये मरना कई तरीके से होता है। में अभ्न अधिक न लिखंगी “आपकी तारा पुनश्च--उत्तर के लिये में स्वयं किसी समय आऊँगी।




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