हिन्दू पाद पादशाही | Hindu Paad Padshahi

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Hindu Paad Padshahi by विनायक दामोदर - Vinayak Damodar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हन्दू-पाद-पाद्शाही ८ হত मरहठोंका यह आन्दोलन प्रारम्मिक कालले ही व्यक्तिगत तथा प्रान्तिक आन्दोलन न था, वरन्‌ यह हिन्दे सारे हिन्दुओंके धमे तथा खत्वकी रक्षा करते জীব भारतवर्ष से विधम्मियोंका नामोनिशान पिराकर एक दद विशाल स्वतन्त्र হিল্ভু- साम्नाज्य स्थापित करनेके लिये किया गया था। इस देश- भक्तिका भाव केवछ शिवाजीहीके हृदयमें भरा न था, वरन्‌ उनके सारे मित्रमंडल तथा महाराष्ट्रवासि्योक हृदयमें লী किसी-न-किसी अंशमें अवश्य पाया जाता था और उनके हृदय - को उतनाही उत्खाहित कर रहा था जितना शिवाजोके मनको भमड़काया था; जिससे उस समय शिवाजीका स्वागत प्रत्येक स्थाने, जहां वे पधारते थे, एक प्रसिद्ध देशोद्धारकके रूपे श्रद्धापूषेक किया जाताथा। लोग अब भी मुखलमानोंका साथ दे रहे थे और उनके पक्षपाती बने हुए थे, क्योंकि उनके हृदयमें मुसल- मानोंकी धाक इस प्रकार जम गई थो कि वे विचारते थे कि इस बांदशाहीके सामने मरहठोंका आन्दोलन सफल न हो सकरैगा और: ভীন লা शिवाजी जेखे नवयुवक नेताकी अध्यक्षतामें काम करना अपनी अप्रतिष्ठा खमणते थे, और कुछ ऐसे भो स्वार्थी . छोग विद्यमान थे, जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थपूर्तिके लिये यवन- राज्यका चिरस्थायो रहना ही परमावश्यक समझ रक्‍खा था | शवाजौ महाराज उस ` खमय न केवट मह्यराघ्रवासियेकि भमुख थे, वरन्‌ सारे दक्षिण ओर उत्तसेय হল,




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