सागर सरिता और अकाल | Sagar Sarita Aur Akal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77 MB
कुल पष्ठ :
305
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सागर-सरिता ओर अकाल
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बह समझे कि अनिल को भी उन्होंने प्रभावित किया है । वह किसी मंत्र को
बारम्बार रटकर स्मरण कर लेने की चेष्टा कर रहा है । उनका अनुसरण |
वह अब भी साधारण जन से उच्च है। एक गये उनमें उदय हो गया । वह
अपने से मुग्ध खढ़ा अनिल कौ ओर देखते रहे । .
उन्होंने अपनी दृष्टि उसके हाथों से परों की ओर धीरे-धीरे सरकाई । उनके संसं
से भोगवादी अनिल में जो यह परिवत्तंव हो रह्या है उससे उसके शरीर पर क्या.
प्रभाव पढ़ा है यह वह आँकना चाहते थे । ५
भट्टाचाय की दृष्टि अनिल के वक्ष तक पहुँची और उनपर रखी एक चौकोर
वस्तु पर अटक गईं। चौखटे में जड़ा चित्र जो दर्पण भी द्वो सकता है ।
इदु ने कल्पना की योगिराज श्रीक्षष्ण, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, अथवा स्वामी
विवेकानंद । मन ने पूछा--बोलो कौन
इदु ने अपने जुआ खेला | श्रीकृष्ण, नहीं विवेकानंद । तीन चार बार तीनों.
पर बारी-बारी से बल देने के परचात् निश्चय किया श्रीकृष्ण ।
लपक कर उन्होंने अनिल के ऊपर से चित्र उठा लिया। उलट कंर देखा
वह चौखटा उसके हाथ में आकर जेसे ,प्रज्ज्वलित हो उठा । ताप भद्टाचार्य के
लिए भसह्य हो गया | वह छूट कर नीचे गहे प्रर गिर पड़ा ।
भट्टाचाये महाशय का योग-साधन नारी-दशन खण्डित होते-होते बचा ।
मन में उठा--केसा नीच है यह अनिल | किस निलज्जता से इस गन्द चित्र को
हदय से चिपटये था ।
अनिल ने फ़ोटो गिरने का शब्द सुनने के परचात् भट्टाचाये के द्वाथ को अपनी
छाती की ओर बढते देखा । वह इड़बढ़ा कर उठ बेठा । सुहासिनी के पत्र-खण्ड
_शीघ्रता से कमीज को जेब में डाले और चित्र को उठाकर पीठ पोछे छुपा लिया ।
जब उसने भट्टाचाय के नयनों में देखा तो पाया वे नयन लैसे उसे घोर अपराधी
समभ रह ह । उनके लिए जैसे उसने इत्या जैसा को$ जघन्य पाप किया दो ।
अनिल बोला नहीं । चुपचाप अपने ट्रक की ओर गया और चित्र नीचे रखकर.
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