सागर सरिता और अकाल | Sagar Sarita Aur Akal

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sagar Sarita Aur Akal by रामचंद्र तिवारी - raamchandra tiwari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचंद्र तिवारी - raamchandra tiwari

Add Infomation Aboutraamchandra tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सागर-सरिता ओर अकाल ४ बह समझे कि अनिल को भी उन्होंने प्रभावित किया है । वह किसी मंत्र को बारम्बार रटकर स्मरण कर लेने की चेष्टा कर रहा है । उनका अनुसरण | वह अब भी साधारण जन से उच्च है। एक गये उनमें उदय हो गया । वह अपने से मुग्ध खढ़ा अनिल कौ ओर देखते रहे । . उन्होंने अपनी दृष्टि उसके हाथों से परों की ओर धीरे-धीरे सरकाई । उनके संसं से भोगवादी अनिल में जो यह परिवत्तंव हो रह्या है उससे उसके शरीर पर क्या. प्रभाव पढ़ा है यह वह आँकना चाहते थे । ५ भट्टाचाय की दृष्टि अनिल के वक्ष तक पहुँची और उनपर रखी एक चौकोर वस्तु पर अटक गईं। चौखटे में जड़ा चित्र जो दर्पण भी द्वो सकता है । इदु ने कल्पना की योगिराज श्रीक्षष्ण, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, अथवा स्वामी विवेकानंद । मन ने पूछा--बोलो कौन इदु ने अपने जुआ खेला | श्रीकृष्ण, नहीं विवेकानंद । तीन चार बार तीनों. पर बारी-बारी से बल देने के परचात्‌ निश्चय किया श्रीकृष्ण । लपक कर उन्होंने अनिल के ऊपर से चित्र उठा लिया। उलट कंर देखा वह चौखटा उसके हाथ में आकर जेसे ,प्रज्ज्वलित हो उठा । ताप भद्टाचार्य के लिए भसह्य हो गया | वह छूट कर नीचे गहे प्रर गिर पड़ा । भट्टाचाये महाशय का योग-साधन नारी-दशन खण्डित होते-होते बचा । मन में उठा--केसा नीच है यह अनिल | किस निलज्जता से इस गन्द चित्र को हदय से चिपटये था । अनिल ने फ़ोटो गिरने का शब्द सुनने के परचात्‌ भट्टाचाये के द्वाथ को अपनी छाती की ओर बढते देखा । वह इड़बढ़ा कर उठ बेठा । सुहासिनी के पत्र-खण्ड _शीघ्रता से कमीज को जेब में डाले और चित्र को उठाकर पीठ पोछे छुपा लिया । जब उसने भट्टाचाय के नयनों में देखा तो पाया वे नयन लैसे उसे घोर अपराधी समभ रह ह । उनके लिए जैसे उसने इत्या जैसा को$ जघन्य पाप किया दो । अनिल बोला नहीं । चुपचाप अपने ट्रक की ओर गया और चित्र नीचे रखकर. १४




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now