अथ आत्मबोधप्रारंभ: | Ath Atmbodhprarambh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
121 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| । १७ आसबोष। (१३११३ )
भ कहं कवीर कई जृह्चि हेसूरमा, कायरा भीर् तहां घरडिभाने॥ `
` | शूर संग्रामको देखि सन्युख मंड, शीश दे नाको साथहुआ।
| कमदकीलो कियो फोजमांही पड़ा,पिसन पौचदलजीतिवा ॥
| ज्ञान शमशैर ठे भूमि सवसर करी,जायनिबानपदकियाबासा ।
| कँ कवीररणधोरनिभयहमा, शीसजगदीशजगजीति खासा ॥ `
| साधुकाखेखतो विकरबेडा मता, सती ओं सूरकी चाल अगे ।
| सूर घमसानहेपटकृएक् दोयकाःसतीघमसानपलएक खनि ॥
. | साथ पमसानहे रोने दिन जूझना, देह प्रयंत का काम भाई।
1 कहेंकबीरटुकबाग ढीली करे, तोडलटिमनमगनसे जमी आई ॥
| साधु पद कहत तो बातअगाधहे, साथु का खेल तो कठिन লাই।
| दोयमरजीवता गत सब गण करः साघु पद भला तो हाथ आई ॥
4 | „+ अवनि क गुण धरे रहत गेरि मृर्ज्योःकिखा कोदेखिनहिं छोभपवे।
। कं कवीर कोई रेख नहिं उपजे, साधु पद् मला तोदहाथ अवे ॥
। नाच आवे तवे काछको काल्यिःनाचबिनकाछ्किसकाम अवे । `
| पाहिरि सन्नाह थारे नाम रणजीतको, बेरघमसानकेकूदि जव ।
उतरे नूर अर श्याम नरं आदरे दाद दाह मं नाहि पव
৷ सिंहकी खाल अर चालहे भेडकी, कहेंकबीरतबासियालखावै॥
` बह्म चोगान तरहौज्ञानकी गेददै) रमत अवधूत कोई सन्त शूरा ।
। सुराति केदंडसोफेरि मन पवनकोः शब्दअनहद तहँ बजे तुरा
. - सदारसएक तहाँ मूठिनहीं बिभचरे,कालसेतील्डे रनदिनहोय घमसानमाही।
.. कहें कबीर यह विकट बैड़ा मता, कायरा खेल का काम नाहीं॥
+ सकल संसारमें एक चीपे फिरे, शीलअरुसांच संतोष नाहीं ।
जगत अर् भेष सबएक नाक चला, जत अरुसत्तकहों गेरपाही॥
दम्भपाषंड संसारसब मिटतहै, सांचके शब्दको नादीं माने
कै कवीर यह खेर बारीक, सके राहको দীন জানি /বি
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