प्रायश्चित | Prayshchit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prayshchit by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूषिका सिंए उस के चित से अबीलाई का प्यान थे उसरता था ।. मीना के लिए थह सभ कुछ बारने को तथ्यार थी ।. उस के मित्र उसे सभी कर रहे मे लोग उसे उस की युवावस्था का स्मरण दिलाते थे मथ की कहर तपस्या का स्मरण दिखा थे पर उस ने कारनीलिया के उन शब्दों मे उत्तर दिया जो उस ने पाम्पी की सुस्सु पर कहां था शोर उस ने निर्मीकता से पाँखों में श्राँसू सर कर शिलुणी का शेप स्वीकार कर जिया | शाभीखार के मार चर्पों के विधिसि सास १११०-११३९ है की घरनाधों का हम सचिसार वर्णन करना नहीं चाह पर हो एक का जहख श्रावश्यक प्रतीस होता है । सभ ११२१ में सीसोन 50801150 की परिषद से उसे अपनी पुस्तक को मला डालमे पर विवा किया पफर४ है उस मे शास्पेन हू कारण फधएााएं 3 में योगी का जीनम व्यतीत करने की. शाह सी ।. वह शास्पेन पहुँचा शरीर वहां श्राहयूजों तैदतेघड्णा 9 नंदी के तद पर उस ने एक कटी यनाई | कते हैं कि है घास पुस की बनाई गई थी ।. दस के पश्चात्‌ शिया के शुविशास मी एक चासुपस दर उर्पाणित दोसा है सिंघनता ने शंवीकाोर्ड को एक . शाला खोलते प्र विघश किया । ब्यों ही लोगों को मालूम छुआ कि घह पुन शिक्षा का फायर सारण कर रहीं हिए दूर सा हो कि की छूटी पर उमर पढ़े | अवीलाएँं के मर्दों हे ै




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now