यश की धरोहर | Yash Ki Dharohar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi,
भगवान दास - Bhagwan Das,
शिव वर्मा - Shiv Varma,
सदाशिव राव - Sadashiv Rav
भगवान दास - Bhagwan Das,
शिव वर्मा - Shiv Varma,
सदाशिव राव - Sadashiv Rav
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi
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सदाशिव राव - Sadashiv Rav
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८
जाने के लिए उतनादही जिम्मेदार थाः जितना स्काँट, श्रौर्
जिसने स्वयं भी लाला जी पर मारात्मक प्रहार किए थे ।
साण्डसं का वह् मुंशी चननसिह मी इनकी ओर पकड़ने को ५
लपका तो श्राजाद ने पहले एक गोली उसके पैर में मारी; |
मगर जब वह पर भटक कर फिर भी आगे बढ़ा, तो फिर
आज़ाद के माउज़र की गोली उसके सीने से पार हो गई ।
आज़ाद, भगतसिह, राजगुरु तीनों घटनास्थल से साफ निकल
आए
राजगुरु के शौक़ शहादत और भगतसिह के प्रति उनकी
प्रतिदवन्द्रितः का एक और प्रबल उद्रक तब हुआ जब भगत-
পিছ ने दिल्ली की असेम्बली में बम फेंकने का प्रस्ताव रखा ।
निश्चय यह हु्रा कि असेम्बली में बम फेंका जाय, वहाँ अपने
कार्य का स्पष्टीकरण करते हुए पर्चे भी फेंके जाँय, वहाँ से
भागा न जाय और अदालत में केस चलने पर एक बढ़िया सा
बयान दिया जाय तथा मुकहमे को प्रचार और स्पष्टीकरण द
का साधन वनाया जाय । भगतसिह ने हौ यह प्रस्ताव रक्खा
. और यह ह॒ठ भी की कि उसे वे ही पूरा करेंगे । राजगुरु इस
.. काम के लिए स्पष्ट ही उपयुक्त न थे। अपने साथ चलने
क लिए भगतसिह ने बहुकेश्वरदत्त को चुना । राजगुरु को जब
.. यह मालूम हुआ तो मानो उनके सारे बदन में आग लग गई ।
उन-दिनों आज़ाद भाँसी चले आए थे । भगतसिह बटुकेश्व र-
.. दत्त आदि दो-चार साथी ही दिल्ली में रह गए थे । राजगुरु
. आज़ाद के पास आए और हर तरह से उन्होंने आज़ाद को यह हक
समझाने की कोशिश की कि वे भग तसिह के साथ जाने के. ॥
ডিও
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