वैदिक ब्रह्म विचार | Vaydik Bramh Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७ )
जगंत्, अपनों उत्पत्तिसे प्रथम, स्वगत आदि तीनसीमाओंसे रहित
सच्चिदानन्दसे मिन्न नहीं था । इसप्रकार सत्यज्ञानानन्दही,
सृश्सि पहले स्वगत आदि तीनों अन्तोंसे रहितहोनेसे परत्रक्ष या.
पूणुब्रह्ष था | सच्चिदानन्दकी ऐसी अवस्थाकोही अतिशुद्ध
पायातीत या. मायारहित कहागयाहे | श्री शह्वराचायंजी, तथा
उनके अनुगाझी सभी विद्वानोंने उपरोक्त सदेव/--इस श्रतिका
कारण कार्यात्मक जगत, सष्टिकालसे पहले सत् या आत्मरूप
था; आत्मासे भिन्न:न था। इसलिए आत्मा या सच्चिदानन्द-
रूपही, स्वगत आदि तोनों भेदोंसे रहितहोनेसे अनन्त या अखंड-
ब्रह्म था। ~:
श्रीविद्रारणयजी कृत प॑चदशीके पंचभूतविवेकप्रकरणमं “सदेव
“इस श्रुतिका शोक २१ “तथा सद्घ्रस्तुनः” -इससे लेकर `
छोक २५ विजातीयं ०यहाँ तक ऊपरमें कहाागयाही अथथ किया-
. है। इनके आगेके छोकोंमेंमी इसी अथको बड़ी युक्कि पूवंक
. सिद्ध कियाहे क्रि उस समय मायाशक्नि अतामसे प्रथक् नहींहे,
इसीसे वह स्वगत आदि दतसे रहितहे | इसलिये अनन्त ঘা
. अखणड सच्चिदानन्दरूपही, सक्त आदि तीनगुणोंसे रहित-
होनेसे निगु णत्रह्नहे, आकाररहितहोनेसे निराकार, पिकार-
हीनहे इससे निर्विकार, कल्पनाशुन्यहोनेसे निर्विकल्प, माया
आदि उपाधिसे रहितहोनेसे निरुपाधिकत्रक्न इत्यादि नाप वालाहे ।
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