वैदिक ब्रह्म विचार | Vaydik Bramh Vichar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaydik Bramh Vichar by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

Add Infomation AboutSwami Ramtirth

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(७ ) जगंत्‌, अपनों उत्पत्तिसे प्रथम, स्वगत आदि तीनसीमाओंसे रहित सच्चिदानन्दसे मिन्‍न नहीं था । इसप्रकार सत्यज्ञानानन्दही, सृश्सि पहले स्वगत आदि तीनों अन्तोंसे रहितहोनेसे परत्रक्ष या. पूणुब्रह्ष था | सच्चिदानन्दकी ऐसी अवस्थाकोही अतिशुद्ध पायातीत या. मायारहित कहागयाहे | श्री शह्वराचायंजी, तथा उनके अनुगाझी सभी विद्वानोंने उपरोक्त सदेव/--इस श्रतिका कारण कार्यात्मक जगत, सष्टिकालसे पहले सत्‌ या आत्मरूप था; आत्मासे भिन्‍न:न था। इसलिए आत्मा या सच्चिदानन्द- रूपही, स्वगत आदि तोनों भेदोंसे रहितहोनेसे अनन्त या अखंड- ब्रह्म था। ~: श्रीविद्रारणयजी कृत प॑चदशीके पंचभूतविवेकप्रकरणमं “सदेव “इस श्रुतिका शोक २१ “तथा सद्घ्रस्तुनः” -इससे लेकर ` छोक २५ विजातीयं ०यहाँ तक ऊपरमें कहाागयाही अथथ किया- . है। इनके आगेके छोकोंमेंमी इसी अथको बड़ी युक्कि पूवंक . सिद्ध कियाहे क्रि उस समय मायाशक्नि अतामसे प्रथक्‌ नहींहे, इसीसे वह स्वगत आदि दतसे रहितहे | इसलिये अनन्त ঘা . अखणड सच्चिदानन्दरूपही, सक्त आदि तीनगुणोंसे रहित- होनेसे निगु णत्रह्नहे, आकाररहितहोनेसे निराकार, पिकार- हीनहे इससे निर्विकार, कल्पनाशुन्यहोनेसे निर्विकल्प, माया आदि उपाधिसे रहितहोनेसे निरुपाधिकत्रक्न इत्यादि नाप वालाहे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now