आचार्य विनोबा भावे का राजनीतिक चिन्तन - एक समीक्षात्मक अध्ययन | Aacharya Vinoba Bhave Ka Rajnitik Chintan Ek Samikshtmak Adhyyan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
182 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(8)
विनोबा को अपने दादा से ही मिली। उनके शब्दों में “दादा के लिये चन्दन घिसना, गणेश चतुर्थी के समय
दादा हम बच्चों से गणेश मूर्ति बनवाते, उसकी प्रतिष्ठापना सांगोपाग पूजा फिर उसका विर्सजन इस प्रकार
आवाहन के साथ विर्सजन का प्रयोग करके सच्चा परमेश्वर आपके हृदय मेँ हे ............ हरम शिक्षादी |
विनोबा जी के पिता नरहिरभार्वे बड़े स्वाभिमानी, टेकवार्ले, व्यवस्था के आग्रही, उद्यमशील
ओर लगनशील पुरूष थे जीवन के प्रति उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण था (7) । पिता की स्वावलम्बी वृत्ति
| -संयम एवं सत्यनिष्ठा का विनोबा जी पर काफी प्रभाव पड़ा। उनका व्यक्तित्व एवं शिक्षाये उनके पुर
के लिये जीवन पर्यन्त प्रेरणा स्वरूप रही । विनोबा जी के अनुसार दूस को दुःख न देना, पड़ोसियों
की सेवा एवं वृद्धं की मर्यादा करना उनके पिता का जीवन था“११|” वह देश की वैज्ञानिक प्रगति पर
श्वास करते थे। पर गांधी जी द्वारा 1935 म अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की कल्पना उन्हें पसन्द
आयी। “गांधी जी के अनुरोध पर वे मंगलवाड़ी पहुँचे और निरीक्षण के बाद उन्होनें सलाह दी कि कागज
का लुगदा बनाने के लिये मशीन का प्रयोग किया जाये बाकी क्रियाएं हाथ से ही हो। उन दिनों ग्रामोद्योग
सब काम हाथ से ही करने पर जोर दिया जा रहा था, इसलिये उनकी सलाह नहीं मानी गयी पर
बाद मेँ उनका विचार मान्य हुआ? विनोबा की मां के निधन के बाद वह बड़ौदा में ही रहते थे। अन्तिम
समय में अपनी 'बीमारी की सूचना अपने प्रुत्रों को भी नहीं थी। विनोबा को इसकी सूचना अपने मित्र
से प्राप्त हुई । उन्होनें अपने भाई शिवाजी को वहो भेजा जो जिद्द करके उन्हे धुलिया लाये, जहाँ अक्टूबर
1947 में उनका निधन हो गया।
विनोबा की माँ धार्मिक सह्दय और घरेलू महिला थी। माँ का विनोबा जी के जीवन पर
सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। स्वयं उन्होनें कहा है कि “मेरे मन पर माँ के जो संस्कार है, उसकी कोई उपमा
नहीं है, मुझे अनेक सत्यपुरू्षों की संसगति प्राप्त हुई ৯, अनेक महापुरूषों के ग्रन्थ मैने पढ़े ढै। जो
का शिक्षण मिला
अनुभव से भरे है उन सबको मै एक पलड़े में रखता हूँ और माँ से मुझे साक्षात भक्ति
है उसे दूसरे पलड़े में रखकर
सितति
तौलता हूँ, तो यह दूसरा पलड़ा भारी होता है? |
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