नगरीय एवं ग्रामीण वृद्ध व्यक्तियों की समाजार्थिक समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन | Nagriy Avam Gramin Vradh Vyaktiyon Ki Samajarthik Samasyaon Ka Tulnatmak Adhyyan

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Nagriy Avam Gramin Vradh Vyaktiyon Ki Samajarthik Samasyaon Ka Tulnatmak Adhyyan by स्वामी प्रसाद - Swami Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्षीणतांए-आँख, कान, नीद, स्वाद, उठने-बैठने आदि के रूप में दृष्टव्य होती है। मांसपेशियों में दुर्बलता आने के कारण कार्य करने में थकावट वट शीघ्र हो जाती है। वृद्धावस्था में मोतियाबिन्द, मधुमेह, हृदयरोग, पक्षाघात, रक्तचाप का बढ़ना आदि रोग गंभीर रूप धारण कर लेते हैं शरीर के विभिन्‍न जोड़ों में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है। शारीरिक व्याधियों के साथ-साथ वृद्धों में मानसिक द परिवर्तन तीव्र हो जाते हैं। जिनका सीधा प्रभाव उनके परिवारिक परिवेश पर पड़ता है । 14 वृद्धावस्था की उपादेयता वृद्धावस्था का सामर्थ्य अत्यन्त विशिष्ट होता है और उसका उपयोग परिवार समाज और राष्ट्र के हित में युवा पीढ़ी बखूबी कर सकती हैं। प्रकृति मं किसी एक अवस्था में किसी एक गुण का क्षरण होता है तो दूसरे का ` उदय। जीवन की कोई अवस्था प्राकृतिक विशेषताओं से रीती नहीं होती | वृद्धं के सामर्थ्यं की तीन विशेषताएं होती है 1- अनुभव 2- ध्य 3ॐ- प्रदाय দি उपर्युक्त में सबसे बड़ी विशेषता प्रदायिनी शक्ति होती है। बुजुर्ग अपनी संतान को अपना सब कुछ दे देना चाहते हैं युवा पीढ़ी पर निर्भर करता हे कि वे संतान के रूप में उनसे अपने लिए कितना हासिल करती हैं। भारतीय समाज के मध्यम वर्ग में 22-23 वर्ष तक संतान अपने माता-पिता पर अश्रित होती है यदि कोई लम्बी उम्र तक जीवित रहता हेतो. उसकी आत्मनिर्भरता का कालखण्ड मात्र 3538 वर्ष रहता है ¦ उर्वरित 4 35 ५८०५ 31 4 असहाय ही होता है। चाहे वह असहायता शारीरिक हो अथवा आर्थिक । मानव॒ ः 13. समाज कल्याण मासिक, जून, 2005-पूर्वोक्त सं0--26




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