आस्तिक तथा नास्तिक दर्शनों में मोक्ष चिन्तन के तात्त्विक विकास का समीक्षात्मक अध्ययन | Aastik Tatha Nastik Darshno Me Moksh Chintan Ke Tattvik Vikas Ka Samikshatmak Adhyyan

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Aastik Tatha Nastik Darshno Me Moksh Chintan Ke Tattvik Vikas Ka Samikshatmak Adhyyan  by शिवराम सिंह गौर - Shivram Singh Gaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्ता रखते हैं। इसी तरह योग दर्शन भी बाहय जगत्‌ के विषय में नांख्य दर्शन के दार्शनिक सिद्धान्तों का अनुसरण सा करता हुआ प्रतीत होता है। भास्तिक दर्शनों मेँ न्याय वैशेषिक दर्शन को पूर्णतः द्वैतवादी (यथार्थवादी) की मान्यता दी जाती हे । इस दर्शन ने एकाधिक सत्ता को स्वीकार किया हे। घट-पटादि का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है । हमें उन वस्तुओं का ज्ञान हो या न हो तथापि अपना अस्तित्व है। उनके मतानुसार प्रत्येक प्रतीति या ज्ञान का एक विषय हे। विषयी ज्ञान से पथक्‌ हे। न्याय का यथार्थवाद एवं द्वैतवाद अनुभव एवं तकं पर अवलम्ब्ति है। इसी तरह यथार्थवादी वैचारिकों में मीमांसा का स्थान महत्त्वपूर्ण है । यद्यपि जैमिनी के मीमांसा सूत्र में कर्मकाण्ड सम्बन्धी व्याख्या की गई हे । विशेष दार्शनिक व्यवस्था है। मुख्यतः इनमें यज्ञो ओर कर्मकाण्डों की व्याख्या की गई है, फिर भी मीमांसा दर्शन के दो मेरुस्तम्भ प्रभाकर, कुमारिल भट्ट दैतवादी तथा यर्थाथवाद के प्रबल समर्थक थे मीमांसा दर्शन में विशेषतः वैदिक परम्परा का निरूपण करते हुए वैदिक दर्शन का निबन्धन किया हे। उत्तरवतीं बोद्ध आचार्यओौर उत्तरवर्ती मीमांसक आचार्यो ने अपने-अपने दर्शनकी महत्ता को भाष्यों एवं टीकाञं के माध्यम से शास्त्रार्थ-शेली में निरूपित किया है। इन भाष्यकारो के दार्शनिक साहित्य की संरचना हुं । बोद्ध आचाय दिङ्नाग ओर धर्मकीर्ति आदि बौद्ध दार्शनिकों ने दैतवाद एवं यर्थाथवाद के विरुद्ध आक्रमण करके सब कुछ क्षणिक जगत्‌ की यथार्थं सत्ता को अस्वीकार कर दिया है। इसका मत था कि जगत्‌ की बाह्य वस्तुं यर्थाथ में नहीं है। इनके विरुद्ध मीमांसकं ने यह सिद्ध किया कि जिन वस्तुओं का ज्ञान हमें इन्द्रियों के द्वारा होता है, वे वस्तुएँ यर्थाथरूप में हैं, _ हा वे केवल प्रतिबिम्ब मात्र नहीं है। मीमांसकों के अनुसार हरमे तीन प्रकार ह के पदार्थों का ज्ञान का होता है।




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