डॉ. धर्मवीर भारती की कविता : युगदर्शन के परिप्रेक्ष्य में | Dr. Dharmveer Bharti Ki Kavita : Yugdarshan Ke Pariprekshy Mein

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Dr. Dharmveer Bharti Ki Kavita : Yugdarshan Ke Pariprekshy Mein by सियाराम शरण शर्मा - Siyaram Sharan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` इ्लिए वे जीरण- शीर्णं मान्यताओं के विरोधी समाजवदिता का प्रमुख योग हे।एक ओर भारत के प्राचीन मानवतावाद की द॑हाई देकर सस्कृति के प्रति जागरूक बनाने की प्रक्रिया इस युग में हुई हैं, तो दूसरी ओर प्राचीन सांस्कृतिक गौरव को आधार स्वरूप ग्रहण कर अगरेजी शासको के शासनतन्त्र भ देश की तत्कालीन दुर्दशा का सिंहावलोकन किया गया है ।'' ब्रिटिश राज्य के अत्याचारों से पीडित भारत अपनी स्वतंत्रता के लिए कृतसंकल्प था, किन्तु असफल ` आन्दोलनों के कारण राष्ट्रीय स्वतंत्रता की भावना को ठेरा पहुँची थी । इरारों सवंधिक प्रभावित शिक्षित वर्ग था। वांछित सुविधाओं के अभाव में उसका निराश होना स्वाभाविक था । तत्कालीन पूंजीवादी विचारधारा से इस वर्ग में विद्रोह पनप उठा था, किन्तु सही दिशा निर्देश न मिल पाने के कारण नवनिर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो पा रहा था । इस प्रकार एक साथ राजनैतिक पराधीनता, बेरोजगारी, पारिवारिक तनाव एवं भुखमरी के कारण जर्जर स्वास्थ्य, व्यक्तिगत प्रेम की असफलता आदि ने छायावादी कवि को अत्यन्त क्षुब्ध कर दिया । दार्शनिक स्तर पर वेदान्त के प्रभाव से वह अहंवादी तो पहले ही हो चुका था । जैसे -जैसे परिस्थितियों के कारण उसका अहं पराजित होता गया, अवसाद बढ़ता गया । आकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर सामाजिक बन्धनों के... कारण वह निराशावादी बन गया । उसकी व्यक्तिवादी जीवन दृष्टि नैतिक ओर सामाजिक मान्यताओं से संघर्ष करती हुई निराशा और वेदना की जन्मदात्री बन गयी । वैथक्तिक असफलताओं ने इस निराश को और गहरा... दिया । यही कारण है कि निराला व पंत की रचनाओं म प्रणय जनित पीडा के स्थान पर सामाजिक ` परिवेशजन्य व्यथाओं ने अभिव्यक्ति पायी है । 'राम की शक्तिपूजा' मे पराजय से आशकित राम की वेदना वस्तुतः जीवन सप्पा से रस्त निराला की वेदना है, जो दूसरे स्तर पर 'सरोजस्मृति' जैसी कविताओं में व्यक्त... इई है । जीवन संघर्ष भ मिलने वासी पराजयो से विक्षुग्ध ओर वेयवितिक असफलताओं से निराश होकर छयावादी कवियों ने पलायनवृति को भी प्रश्रय दिया । प्रसाद की 'ले चल मुझे भुलावा देकर' म यही वृति प्रमुख हे । यह पलायन कभी प्रकृति के क्षेत्र में हुआ है तो कभी दर्शन के क्षेत्र में । विषाद व निराशा के कारण छायावादी कवि अन्तर्मुखी हो गये । समाज के आदर्श बन्धनों में बंधे रह... कर वे समान व राष्ट्र की बुराइयों के प्रति विद्रोही न बन सके । नितान्‍्त वैयक्तिक अनुभूतियाँ होने के उपरान्त... कं भी वे सामाजिक मर्यादाओं के आदर्श बन्धन को स्वीकारते रहे ओर निराश व कुंठित होकर पलायनवादी भी हो ८ । गये । उनकी यही निराशा एवं समाज के प्रति त्रिदोह न कर पाने की विवशता ही काव्य के क्षेत्र में विद्रोह 1 5 बन कर उतर गयी । कलात्मक स्वतंत्रता के लिए छायावादी कवियों ने काव्य-रूढियों व नैतिक मर्यादाओं के লহ? অল্ত্ল तोड़ फेंके । जीवन की वास्तविक अनुभूतियों को मात्र काव्य के द्वारा ही अभिव्यक्ति दी जा सकती थी | १ बन कर ` पुरातनता का निर्मोक उतारने के लिए तत्पर हो गये । डॉ0 नंगेन्द्र, आधुनिक हिन्दी कविता । प्रमुख प्रवृत्ियाँ, पृष्ठ-17




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