विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तृतीयक सूचना सोतो का आलोचनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन | Vigyan Avam Prodhyogiki Ke Kshetra Mein Tratiyak Suchna Soto Ka Aalochnatmak Avam Samikshatmak Adhyyan

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Vigyan Avam Prodhyogiki Ke Kshetra Mein Tratiyak Suchna Soto Ka Aalochnatmak Avam Samikshatmak Adhyyan by जे . एन . गौतम - J . N . Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिक युग को सूचना का युग माना जाता ठै । यही कारण है कि आधुनिक विश्व के प्रत्येक देश में सूचना को राष्ट्रीय तथा सामाजिक विकास का मूलाधार माना जाता दै ॥ सूचना की शक्ति का ही यह परिणाम है कि विश्व में एक द देश सम्पन्न तथा दूसरा गरीब नजर आता है । इन्हीं सूचनाओं के संचित कोष को साहित्य का नाम दिया जाता ढै । यड एक अकाट्य सत्य दै कि किसी भी विषय की आधारशिला उसका साहित्य दै । साहित्य का विकास बहुआयामी, तीव्र एवं जटिल होता है । यह माना जाता दै कि साहित्य का विकास विज्ञान के क्षेत्र में पांच से दस वर्षो में दुगना तथा समाज विज्ञान के क्षेत्र में आठ से बारह वर्षों में दुगना हो जाता है | यही साहित्य अध्येताओं, अन्वेषकों, वैज्ञानिकों इत्यादि के कार्यो में आवश्यक सूचना के रूप में कार्य करता है 1. आमतौर पर सूचना शब्द के अभिप्राय को समझने के लिए 3 आमतौर पर दो प्रकार की विचारधाराओं! का प्रयोग किया जाता हैः 1. व्युत्पत्ति पर आधारित 2. विचारधारा तथा तथ्यो की अभिव्यक्ति पर आधारित. व्युत्पत्ति के आधार पर प्रचलित विचारधारा के अनुसार ` सूचना शब्द अंग्रेजी भाषा के [्णि7210) शब्द से बना दै जो . ঢ0000800 তত্র ए0778 नामक दो शर्ब्दो के संयोग का परिणाम ` ই । इन दोनों शब्दों का अर्थ किसी वस्तु के आकार और स्वरूप ০ 14০ 9917), 16-1.,1191010 ০0170601010110172107”, 0 উল




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