विश्व परिचय | Vishva Parichay

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Vishva Parichay by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्व-परिचय परमाणलोक , हमारा सजीब शरीर कई बोध या समभ की शक्तियों को ले कर पेदा हुआ है, जेसे देखने का बोध, सुनने का बोध, सूंघने का बोध, चखने का वोध ओर छूने का बोध | इन्हीं को हम अनुभूति कहते हैं। इन के साथ हमारा अच्छा-बुरा छगना और हमारे सुख-दुःख गंथे हुए ই। ` हमारी इन अयुभूतियो की सीमाः बहुत अधिक नहीं है । हम बहुत थोड़ी दूर तक ही देख सकते ই आर बहुत कम वातं खुन सकते है । अन्यान्य बोध शक्तियों की दौड़ भी बहुत दूर तक नहीं है। इसका मतलब यह है कि हम जितनी शक्ति का सम्बल ले कर आये हैं वह इसी हिसाव से मिली है कि हम इस पृथ्वी पर अपने प्राण बचा रखे'। जिस नक्षत्र से पृथ्वी का जन्म हुआ है और जिसकी ज्योति इसके प्राणों का पालन कर रही है वह है सूथ । इस सू्यने हमारे चारों ओर प्रकाश का पर्दा टाँग दिया है। प्ृरथ्वीके सिवा : इस विश्वमे ओर भी क रै, यह चात बह देखने नहीं देता । किन्तु दिन समाप्त होता है, सूरज डूबता है, आलोक का पर्दा




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