समाज में स्त्रियों का स्थान और कार्य | Samaj Me Striyo Ka Sthan Or Karya

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Samaj Me Striyo Ka Sthan Or Karya by गाँधीजी - Gandhiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्रो अबला नहों है ११ दमा भयं निक बल है, तो स्त्री पुरपसे अनस्त गुनी भूचो হাঁ क्या मुमा मटज-योघकी शकि पुरयसे अधिक नही दै > क्या मुमकी व्याग- झवित पुरुफसे ज्यादा नहीं है? बया अुसकी सहिष्णुता और बुभका साहस पृश्षद्री पीछे नहीं छोड़ देवे ? জুম লিনা पुरुषकी हस्तरो ही सम्मव नहीं हो सबती थी। अगर अहिसा हमारे जीवनका धर्मं दै, तो भविष्य स्प्रीके हाथमें है। यैमा कौन है जो म्त्रोसे अधिक प्रभावश्वाली रूपमें मनुप्यके हृदयसे अपीक कर सकता है। यग ভিতিথা, १००४-३० अगर पुरुषने अपने अधे स्वार्थके वश होकर स्त्रीकी आत्माको बुचठ ने दिया होता, जैसा कि मुसने किया है, या स्त्री भोगों” के आगे झुक' न जाती, तो वह दुनियाके सामने अपने भीतरकी अपार হাতির সত ক सदी होती। यग जिडिया, ७०५०-३१ मेरी रायमें स्त्री आत्मत्यामककों मूर्ति है, लेकिन दुर्भाग्यमे वह आज यह महसूस नहीं करती कि आस अमस क्षेत्रमें पुरपसे कितनी बडी अनुकूलता है। जैसा टॉल्स्टॉय कहा करते थे, स्त्रिया पुरुषके जादुओ प्रभावमे फगपर दुख भोग रही हैँ । यदि वे अहिसाकी शक्तिकों पहचान छे, तो वे अवला कहलाना कमी पसन्द नहों करेगी। যন आअिडिया, १४-१- ३२ स्त्रिया जीवनमें जो कुछ शुद्ध और धामिक है भुस सत्रकी विशेष संरक्षिकाये हूँ) स्दमाउसे रक्षणशील टोनेके कारण यदि वे अध विश्वासोरों छोडनेमें धीमी हूं, तो जोवनमें जो बुछ शुद्ध और भुदात्त है भुस सबग़ो छोडनेमें भी वे बुतनी ही धीमी हे। हरिजन, २५०३-३३ पुशयने स्त्रीको अपनी कडपुतली माता है, स्त्रोने पुरुषकी कश्युतदी बनना सीखा है और आखिरमें असा बतना बसे आसान জী सुमद




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