जब वहार आई | Jab Bhar Aai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
613
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कनॉट प्लेस में २१
समभिये कि साइ-चलते ये मनचले जवान किसी को पकड़कर चूम नहों
लेते 0৮
“देखा करते भी हों तो क्या पता १
इस पर हम दोनों ठठाकर हँ४ पड़े । बाद की दिशा बदलने के लिये
शायद वह बोली, बराण्डे की एक छोटो सी दूकान को देखकर, “आपके
लिये कफ़ के बटन लेने हैं न! चलिये ले लें, दह रही दूकान |”?
हम दोनों को इतदी छोटी सी दुकान पर आने की कृपा करते देख
दूकावरार ने तशक से सलाम किया, “उलाम खाइब, सल!म मेम साइब,
क्या पेश करू खिदमत में ह?
बइ तो एक सास में दी सब कुछ কহ गया। वैसे मेम खाद कदे
जाने की तो मीरा आदी थी, परन्तु एक नवजवान साहब के साथ होने पर
मेम सादय फे जाने पर--विशेय कर जिस निगाह से देखकर, जिस
लइने में उस दूकानदार ने कद्टा-नीण पल भर के लिये निरले
असमंजस में पद गई, पर तुरन्त संभल गई व बोली, “कमीज के कफ के
बदन चाहिये।?
बहुत सारे बटन दूकानदार ने पेश किये | नीए इर एक में कुछ
मीन-मेख निकालती रद्दी। मुझसे मो एक-श्राध बार सलाइ ली, परन्तु
मैंने कोई भी सलाह देने से इन्कार किया। जत्र सुरुचि की सब्बीब प्रतिमा
स्वयं चुनात्र कर रही द्वो मेरे कफ़ के बटनों का, ते मैं भला उसमें अपनी
श्रशानता का परिचय क्यों देता |
मीय को मेरी रुचि का एता ने बने कैसे लग चुका था | इन
लड़कियों को शायद भगवान ने सूंघकर समभ जाने की एक धटी इन्द्रिय
दे रखी है जो लड़कों को नहीं मिलती | ये बहुत बुछ तो संघकर ही
समभ आती हैं, कब, कैसे, कोई नहीं जानता ।
खैर, एक सादा, अत्यन्त रवेत पर चमकीला व खुब्सूरत बटन चुना
गया जिसमें गोल काली घारी किनारे पर इली थी। मुझे भी खूब ज॑चा।
जब হম लोग चलने को हुए तो दूकानदार बोला, “हुजूर, मेम साइब
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