शिक्षा शास्त्र | Shiksha Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिश्ा झीर उठक उदंर्प ११ मुब्यवस्यित कर देना है | जो शिक्षा हम धरने यहाँ फे स्कूलों में प्रचलित करें बह बच्चो को प्राहतिक प्रदृत्तिवों को, उनहों सुन्दर श्रषस्थाश्र को और उनकी विधायकता को पकनित कट | तालर्थं यह दि बस्वे की प्रदत्त को सामने रखने हुए परिवार यथा समाज या शासन उसके बातावरण में श्रोर उसके विचार्री में उच्चित रूप से पतिवितम कया सफते हैं ३ ऐसे परियतनग जो उसकी शारीरेक श्रीर मानसिक शक्तियों/फों पूर्ण रूप से विकृमेत कर सर्कें, जो उसको अशरशणशा, अपा्िस्ता और अममाडिकता से रोग रुक छौर उसको सतुभ्वा फा प्क आादर्शा नमूना घना सके। यही वास्तविक शिक्षा है । शिक्षा का उदृरय यह दहोने। धादियें कि दमारे नवयुव॒क গ্রথন व्यक्तित्व या विड्ाम समुचित दग से फर र के । वद राष्ट्रऔर समाज की মী।যঘহ विमूतियाँ बन हूझें। यह इस বাঃ ছল লঙ্কা কি চান ইহারা के साय अपना जौयन प्रेम और एकता, गश्भीरता और सहनशांलत! से च्वत्रीत कर सके | शिक्षा और निर्देप-प्राय दुछ सम्जग शिक्षा श्र निर्देव को एक , इ प्रयोग समझते हैं। यद गराशर गस्ती है। शिक्षा एक विस्तृत प्रयोग या नाम है हो बच्चे की प्राकतिक शक्तेयों को शिक्षित करती है। शरीर उसके व्यक्तिय को विकमित करके उसको देश श्रौर जाति के लिए गैरद और अमभिमान के योग्य बना देती ই। পনিইন৮ (0৭৮ 06102) ম হলে ক ক শান में दृद्धि फरने हैं; उसको बुरे कामों से शक कर अच्छे कामों का उत्साद उत्पक्ष करते हैं। उसे प्राय कामों में अभ्यास घबरना सिखाते हैं। इस तरह निर्देप वास्तव में शिक्षा का एक भाण है। स्कूल में दम थ्राम तौर पर बच्चों को निर्देपों द्वारा कोई ने कोई दिपय सिखा सकते हैं | इस तरह देखते में स्कूल मिफ़ाने या निर्देश करने का काम करता है हि नहीं, यह बात नहीं है! स्कूल में बाते सिखाने के साथ-साथ बच्चे की मानसिक शक्तियों का पोषण किया




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