हांगकांग की हसीना | Hangkang Ka Haseena
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भौर यवी नृत्य \
क्या कहते हो कवि ।
ऐसे दुख-भरे स्वर मे ।
कशवही हो?
दिबकी को खुद मातूग सही है। उसने विद्यर हाथ से रख दी
र आना देः दोनो हाथ अपनी याचो पर रखकर रोता है,
के उसे कुछ मालूम नहीं है कि वह क्या कदताहै। गुम
शिमा याद आतः है। एक पूरी पीढ़ी का जदने सक रे उड़ सवा
में का घर एक मन्दिर की तरह कता हुआ है । एक ऊची पहाड़ी
व पर। नीचे अधियारे समुन्दर को खाई है। मे का घर
दी और खुली हुई सीढ़ियों से घुरू होता हे। ऊपर जाकर एक
1 कपरा है। कमरे के घाहर नौचे की चदूटानों से बेलें आती
कुध राक-गारंव की माड़ियां उगी है। कुछ खुशवूद्र फूलो के
से हैं। नीचे रास्ते रोशन हैं। मकानों की खिडकिया रात হা
धयारे मे झिसी बूढे दाशंनिक को ऐतक बी तरह चमबती हैं।
मे अभियारे समुन्दर में गरीबो के छोटे-छोटे डोंगे कमनोर
সুখী की तरह भिलमिलाते हैं। हवा में नमक ओौर नशा तम्काक्
₹ पप्तीना और करीद बैठी हुई में के बदन की महक । में की
त्मा भी उसके धर वी तरह कई मछिली है । हर मजिस पर एक
प्रा है। हर कमरे के बाहर एक टैरेस है। अमो तो मैंने मिर्फ
(ला कम देवा है । मगर मे बहुत फलात्मक मालूम रोती है ।
। सय दत्त ववतं तो मेरी-उतकी सुलह हो चुकी है। लेकिन कोई
£ घण्टे पहले जब उसने घटी बी आवाज पर मेरे लिए दरवाजा
ला! या दो मुझे देखकर कितनी ऋ्रोेषित हुईं थी !
“अब आए हो, जद मैंने तुम्हारे दवाय तुम्हारे ही एक देश-
सी को परीद लिया है।”
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