हरिवंश पुराण का संस्कृति विवेचन | Harivansh Puran Ka Sanskritik Vevechan

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Book Image : हरिवंश पुराण का संस्कृति विवेचन  - Harivansh Puran Ka Sanskritik Vevechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे , हरिवश्ञ पुराण फा सांस्कृतिक विवेचन सूचित करने के लिए अनेक प्रमाण दिये गये है । इन प्रमाणों को निम्नलिखित आठ भागों में वाट दिया गया है-- १ महाभारत के पवंसग्रहपवं मे सौ पवो के अतगत हरिवकश्ष का समावेश्च । २ पर्व॑सग्रहपर्व में ७९ वें श्लोक के जन्तगंत हरिव शस्य हरिवसकयने सविष्य- कथते च त्ात्प्ेम्‌' का उल्ठेख 1 ~ ३ हरिश के उपक्माध्याय में शौनक के द्वारा सौति से भारती कथा को सुनने के बाद वृष्णि-अन्धको के चरित्र को सुनने की इच्छा । ४ हरिवदपर्व में बीसवें अध्याय के अन्तर्गत यथा ते कथित पूवं मया राजपि- सत्तम के द्वारा ययाति के चरित्र की महामारत मे उपस्थिति! ५ हरिवशपव के वत्तीसवें अध्याय में अवृदयवाणी का कथन त्व चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला के द्वारा महामार में शकुन्तछा के उपास्याव की ओर सकेत 1 ६ हरिवश के ५४वें अध्याय में “मित्रस्य घनदस्य' के द्वारा मिन्राश्त्व के रूप में कणिक मुनि का उल्लेख | यह उल्लेख आदिपर्व में जम्बूक कया के बवता कणिक सुनि की पूर्व॑ स्थिति की ओर सकेत करता है। ও भ्रविष्यपर्व की समाप्ति में १३२वें अध्याय के अन्तगंत महाभारत-श्रव्ण- फन फा वर्णन। महाभारत यद्यपि स्वर्गारोहणपर्वानत है, वितु शतपर्य वी गणना में हरिवज्ञ के समावेश से महाभारत को हरिवश तव' मानना पडता है। ८ अनुशासन पर्व में कुष्ण के कुछासगमन का सकेत सक्षिप्त रूप में किया गया है। हरिवश्ञ के भविष्यपवें में इसी वृत्तात का विस्तार देखा जा सता है' | हरिवश के प्रास्ताविक' में वणित महामारत तथा हसिविश वी एकता को सूचित बरनेवाले ये सिद्धात महत्त्वपूर्ण हैं अनेव' उत्तरवालीन प्रमाणा वे आधार पर महाभारत तथा हरिवश ये सम्बन्ध ঘা খান होता है। जानन्दवर्धत ने घ्वन्यालोव में हर्विश्त तो महाभारत या उप- सहारपवे मा है! ध्वन्यालोक वे इस स्थल पर हरिवश्ञ में शान्तरस या प्राघान्य १. स्वि (चित्रशाला सरकरण) आस्ताविक पु० २०३।




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