राज-निवेश एवं राजसी कलाएं भाग 3 | Raj Nivesh And Rajsi Kalaye Bhag-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
499
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रारादन्स्थापत्यम्-प्रासाद-निर्माण' भारतीय-स्थापत्ये मौलिमावायमानम्।
प्रासादोत्नत्ती साम्पतिका स्यापत्यक्लाशोविद:-भारतीय-स्थापत्यमविकुत्य वृझना
ग्रन्थ-कर्तारः लेसवाइच ये येडवझूता: समालोधिता: ते सर्वे आ्रान्ता: यत्तोहि शिल्प-
शास्प्रेपु प्रासादोपत्तो अआसादयप्रमृतौ ये येऽवकूता सिद्धाल्वीकूता तेन्वस्मात
यूते १ नावधारणीयाः । प्रासाद' पुरूप' मत्व॑द वास्तुशास्प्राचार्या' प्रानाद' गुदप -
मधिषुत्य प्रासाद-मित्पे प्रासाद-निर्माणे च प्रासादाइगाना पुरुपादुगोपान्न -
भ्रत्य स्माक समवधारिणीदुतवनास्मवेर्तवव इमामेव सिद्धाल्तधिय निवे-
दायस्तो विलोक्यस्ते विशेषतश्च पुराणोधु तम्त्रेप च॥ तथाहि भवन्तो विपश्चित:
उद्धरणानीमान्यास्वादथान्तु भोः--
श्रासादं वासुदेवस्य मूर्तिभेद निवोध में।
घारदेरणोम् विद्धि प्रायाद् शुपिरात्मय्मु ॥
तेजस्त. पादकः विदि वायु स्पर्शगत' तथा |
पाधाणादिष्वेव जत पाथिव पृिवोगुणाम, ॥
प्रतियम्योद्धय शब्द” स्प ; स्पात् कवं पादिकम् ॥
युकचादिषः भवेदरप र्गमन्नादिदर्नम् ॥
घृषादिगन्ध' गन्धतु वागभेर्यादिपु सस्यिता ।
शुकनासाधिता नासा মা বরঘকী सस््मृतौ,
एवमेप हरिः गाक्षात् प्रासादत्वेन से स्थित३ ॥
সরা विरनरेण-गवं मिद् হাহেঙ্গীয নিনন্বন বিলীহন্তু মূল सिद्धा तेपुभो
प्राादस्थापत्पस्था स्थीयसी मिर्मां भूमिया সতি विमति कथयित्वा লাকা
यारसु-इह्म-दर्न' সরি শীমরাদবনান दीयमानमब्पर्याये । यतौहि सर्वाणि
कास्त्राधि মনা বলা दर्शनदृष्ट्या दीप्तास्ग दृश्यनते । सगीत नादद
माति रब्रह्य स्पातरधे शब्द-प्रद्म स्पोटब्रद्म या स्व शिल्से यास्तुत्रद्य जदोयत
इद दर्श ना प्रागाद-रपापस्थे प्रत्यक्ष दरसीदृइयते |
भाश्तीदे स्थापसये वास्तुऑशप-वितत्ता स्वापस्यस्य प्प्म শীহালপিহ
मया पूछ मेष सवेतितम ॥ वारपु-पुरुफ एवं वासतु-वद्यत्रि प्रस्यवतायथत + षद
भर्ये मदा निजे ४35(४६०४८३० ४०] 1 नाम्नि पन्ये ग्ातिशय सामिविवेश
ब्यास्यातमरित धतः देते व विल्तरेण श्रीमन्तः परियोसपन्सु ॥
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